सर्न के वैज्ञानिकों को हिग्स बोसॉन या गॉड पार्टिकल खोजने के अभियान में महत्त्वपूर्ण सफलता

Jul 9, 2012, 14:44 IST

Science & Technology Current Affairs 2012. स्विट्जरलैंड स्थित यूरोपीय सेंटर फॉर न्यूक्लियर रिसर्च (सर्न) के वैज्ञानिकों ने पांच दशक से जारी हिग्स बोसॉन या गॉड पार्टिकल...

स्विट्जरलैंड स्थित यूरोपीय सेंटर फॉर न्यूक्लियर रिसर्च (सर्न) के वैज्ञानिकों ने पांच दशक से जारी हिग्स बोसॉन या गॉड पार्टिकल खोजने के अभियान में महत्त्वपूर्ण सफलता मिलने की घोषणा 4 जुलाई 2012 को की. गॉड पार्टिकल के बारे में माना जाता है कि यह उन कणों को द्रव्यमान प्रदान करने के लिए जिम्मेदार है, जिससे 13.7 अरब वर्ष पहले हुए बिग बैंग (महाविस्फोट) के बाद अंतत: तारों और ग्रहों का निर्माण हुआ.

एटलस प्रयोग के प्रवक्ता फैबिआलो गियानोती ने कहा, हमें अपने आंकड़ों में 126 जीईवी के द्रव्यमान क्षेत्र के आसपास पांच सिगमा स्तर के नए कण के स्पष्ट संकेत मिले हैं, लेकिन इन परिणामों को प्रकाशन के लिए तैयार करने के लिए थोड़े और समय की आवश्यकता है.पांच सिगमा 99 प्रतिशत खोज की निश्चितता में तब्दील होती है और यह किसी भी कण के खोज होने की घोषणा से पहले आवश्यक होती है. ऐसा माना जाता है कि हिग्स उर्जा स्पेक्ट्रम के निचले सिरे यानि 120 और 140 जीईवी के बीच छुपा रहता है.

सर्न के वैज्ञानिकों के अनुसार लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर (एलएचसी) में जो कण उन्हें मिला है वह लंबे समय से खोजे जाने वाले हिग्स बोसॉन से मिलता-जुलता है, लेकिन खोज की पहचान के लिए और अधिक आंकड़े की आवश्यकता होगी.

वैज्ञानिकों ने इसकी खोज करने के लिए तीन अरब यूरो के खर्च से विश्व की सबसे बड़ी और सबसे शक्तिशाली अणु उत्प्रेरक लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर का निर्माण किया. स्विट्जरलैंड-फ्रांस सीमा पर 27 किलोमीटर लंबी चक्करदार पाइप ढांचे में महाविस्फोट जैसी कृतिम स्थितियों का निर्माण किया जिससे उत्प्रेरक अणुओं के बीच टक्कर हुई. लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर प्रयोग में प्रति सेकंड लाखों अणुओं को आपस में टकराने के लिए प्रोटोंस की दो किरणें आपस में टकराई गईं. इससे महाविस्फोट के बाद सेकंड के एक अंश के लिए रहने वाली स्थिति का निर्माण हुआ. यही वह समय था, जब हिग्स फील्ड अस्तित्व में आया. ऐसा माना जाता है कि हिग्स अणुओं ने ब्रह्मांड के निर्माण की प्रक्रिया में अन्य कणों को द्रव्यमान प्रदान किया.

विदित हो कि हिग्स बोसॉन कण की अवधारणा सबसे पहले वर्ष 1964 में ब्रिटेन के वैज्ञानिक पीटर हिग्स सहित छह भौतिक वैज्ञानिकों ने दी थी. इस कण का नामकरण ब्रिटिश वैज्ञानिक पीटर हिग्स के नाम पर हिग्स रखा गया जबकि बोसॉन शब्द अलबर्ट आइंस्टीन के समकालीन भारतीय वैज्ञानिक सत्येंद्र नाथ बोस से लिया गया. आइंस्टीन ने बोस के क्वांटम यांत्रिकी पर किए गए कार्यों को अपनाया और उसे बोस-आइंस्टीन संकल्पना के रूप में विस्तारित किया.

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