चेर राजवंश के शासकों ने दो अलग अलग समयावाधियों में शासन किया था. पहले चेर वंश ने संगम युग में शासन किया था जबकि दूसरे चेर वंश ने 9 वीं शताब्दी ईस्वी से लेकर आगे तक के काल में भी शासन कार्य किया था. हमें चेर वंश के बारे में जानकारी संगम साहित्य से मिलता है. चेर शासकों के द्वारा शासित क्षेत्रों में कोचीन, उत्तर त्रावणकोर और दक्षिणी मालाबार शामिल थे. चेर वंश की राजधानी बाद में चेर की उनकी राजधानी किज़न्थुर-कन्डल्लुर और करूर वांची थी. परवर्ती चेरों की राजधानी कुलशेखरपुरम और मध्य्पुरम थी. चेरों का प्रतीक चिन्ह धनुष और तीर था. उनके द्वारा जारी सिक्को पर धनुष डिवाइस अंकित था.
उदियांजेरल
यह चेर राजवंश के पहले राजा के रूप में दर्ज किया गया है. चोलों के साथ अपनी पराजय के बाद इसने आत्महत्या कर ली थी. इसने महाभारत युद्ध में भाग लेने वाले वीरो को भोजन करवाया था ऐसी जानकारी स्रोतों से मिलती है.
नेदुन्जेरल आदन
इसने मरैंदे को अपने राजधानी के रूप में चुना था. इसके बारे में कहा जाता है की इसने सात अभिषिक्त राजाओं को पराजित करने के बाद अधिराज की उपाधि धारण की थी. इसने इयाम्बरंबन की भी उपाधि धारण की थी जिसका अर्थ होता है हिमालय तक की सीमा वाला.
सेनगुट्टवन (धर्म परायण कट्तुवन)
सेनगुट्टवन इस राजवंश का सबसे शानदार शासक था. इसे लाल चेर के नाम से भी जाना जाता था. वह प्रसिद्ध तमिल महाकाव्य शिल्प्पदिकाराम का नायक था. दक्षिण भारत से चीन के लिए दूतावास भेजने वाला वह पहला चेर राजा था. करूर उसकी राजधानी थी. उसकी नौसेना दुनिया में सबसे अच्छी एवं मजबूत थी. इसे पत्तिनी पूजा का संस्थापक माना जाता है.
आदिग ईमान
इस शासक को दक्षिण में गन्ने की खेती प्रारंभ करने का श्रेय दिया जाता है.
दूसरा चेर राजवंश
कुलशेखर अलवर, दूसरे चेर राजवंश का संस्थापक था. उसकी राजधानी महोदयपुरम थी. दूसरे चेर राजवंश का अंतिम चेर राजा राम वर्मा कुलशेखर था. उसने 1090 से 1102 ईस्वी तक शासन किया था. उसके मृत्यु के बाद वंश समाप्त हो गया.
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