शून्य की खोज भारत में कब और कैसे हुई?

शून्य, कुछ भी नहीं या कुछ नहीं होने की अवधारणा का प्रतीक है. आजकल शून्य का प्रयोग एक सांख्यिकीय प्रतीक और एक अवधारणा दोनों के रूप में जटिल समीकरणों को सुलझाने में तथा गणना करने में किया जाता है. इसके साथ ही शून्य कंप्यूटर का मूल आधार भी है. यह आलेख भारत में शून्य के आविष्कार से संबंधित है अर्थात इस आलेख में इस बात का उल्लेख किया गया है कि भारत में शून्य का अविष्कार कैसे और कब हुआ था.

Feb 28, 2020, 16:37 IST
When and why Zero invented in India?
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यह कहना गलत नहीं होगा कि गणित में शून्य की अवधारणा का आविष्कार क्रांतिकारी था. शून्य कुछ भी नहीं या कुछ नहीं होने की अवधारणा का प्रतीक है. यह एक आम व्यक्ति को गणित में सक्षम होने की क्षमता पैदा करता है. इससे पहले, गणितज्ञों को सरल अंकगणितीय गणना करने के लिए संघर्ष करना पड़ता था. आजकल शून्य का प्रयोग एक सांख्यिकीय प्रतीक और एक अवधारणा दोनों के रूप में जटिल समीकरणों को सुलझाने में तथा गणना करने में किया जाता है. इसके साथ ही शून्य कंप्यूटर का मूल आधार भी है.
लेकिन सवाल यह उठता है कि संख्यात्मक रूप में शून्य का प्रयोग सर्वप्रथम कब और कैसे हुआ था?
भारत में शून्य पूरी तरह से पांचवीं शताब्दी के दौरान विकसित हुआ था या फिर यूँ कहे कि पांचवीं शताब्दी में ही पहली बार भारत में शून्य की खोज हुई थी. वास्तव में भारतीय उपमहाद्वीप में गणित में शून्य का स्थान बहुत महत्वपूर्ण है. तीसरी या चौथी शताब्दी की बख्शाली पाण्डुलिपि में पहली बार शून्य दिखाई दिया था. ऐसा कहा जाता है कि 1881 में एक किसान ने पेशावर, जो की अब पाकिस्तान में है, के पास बख्शाली गांव में इस दस्तावेज से जुड़े पाठ को खोद कर निकाला था.
यह काफी जटिल दस्तावेज है क्योंकि यह सिर्फ दस्तावेज़ का एक टुकड़ा नहीं है, बल्कि इसमें बहुत से टुकड़े हैं जो कई शताब्दी पहले लिखे गए थे. रेडियोकार्बन डेटिंग तकनीक की मदद से, जोकि आयु निर्धारित करने के लिए कार्बनिक पदार्थों में कार्बन आइसोटोप की सामग्री को मापने की एक विधि है, से यह पता चलता है कि बख्शाली पांडुलिपि में कई ग्रंथ हैं. सबसे पुराना हिस्सा 224-383 ईस्वी का है, उससे नया हिस्सा 680-779 ईस्वी का है और सबसे नया हिस्सा 885- 993 ईस्वी का है. इस पांडुलिपि में सनौबर के पेड़ के 70 पत्ते और बिंदु के रूप में सैकड़ों शून्य को दिखाया गया है.

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Source: www.media2.intoday.in

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उस समय ये डॉट्स संख्यात्मक रूप में शून्य नहीं थे, बल्कि 101, 1100 जैसे बड़े संख्याओं के निर्माण के लिए इसे स्थान निर्धारक (placeholder) अंक के रूप में इस्तेमाल किया गया था. पहले इन दस्तावेजों की सहायता से व्यापारियों को गणना करने में मदद मिलती थी. कुछ और प्राचीन संस्कृतियां हैं जोकि शून्य को स्थान निर्धारक (placeholder) अंक के रूप में इस्तेमाल करती थी जैसे- कि बेबीलोन के लोग शून्य को दो पत्ते (double wedge) के रूप में इस्तेमाल करते थे, माया संस्कृति के लोगों ने इसे शैल (shells) की संख्या के रूप में इस्तेमाल करते थे. इसलिए, हम कह सकते हैं कि प्राचीन सभ्यताओं को “कुछ भी नहीं” की अवधारणा पता थी लेकिन उनके पास इसे दर्शाने के लिए कोई प्रतीक नहीं था. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के अनुसार, भारत में ग्वालियर में नौवीं शताब्दी के एक मंदिर के शिलालेख में वर्णित शून्य को सबसे पुराने रिकॉर्ड के रूप में माना जाता है.

Who invented Zero
क्या आपको पता है शून्य कब एक अवधारणा बन गया?

शून्य भारत में संख्या पद्धति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है. यहां तक कि पहले गणितीय समीकरणों को कविता के रूप में गाया जाता था. आकाश और अंतरिक्ष जैसे शब्द “कुछ भी नहीं” अर्थात शून्य का प्रतिनिधित्व करते हैं. एक भारतीय विद्वान पिंगला ने द्विआधारी संख्या का इस्तेमाल किया और वह पहले थे जिन्होंने जीरो के लिए संस्कृत शब्द 'शून्य' का इस्तेमाल किया था.

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628 ईस्वी में ब्रह्मगुप्त नामक विद्वान और गणितज्ञ ने पहली बार शून्य और उसके सिद्धांतों को परिभाषित किया और इसके लिए एक प्रतीक विकसित किया जो कि संख्याओं के नीचे दिए गए एक डॉट के रूप में था. उन्होंने गणितीय संक्रियाओं अर्थात जोड़ (addition) और घटाव (subtraction) के लिए शून्य के प्रयोग से संबंधित नियम भी लिखे हैं. इसके बाद महान गणितज्ञ और खगोलविद आर्यभट्ट ने दशमलव प्रणाली में शून्य का इस्तेमाल किया था.
उपरोक्त लेख से यह स्पष्ट है कि शून्य भारत का एक महत्वपूर्ण आविष्कार है, जिसने गणित को एक नई दिशा दी और इसे अधिक सरल बना दिया.

Shikha Goyal is a journalist and a content writer with 9+ years of experience. She is a Science Graduate with Post Graduate degrees in Mathematics and Mass Communication & Journalism. She has previously taught in an IAS coaching institute and was also an editor in the publishing industry. At jagranjosh.com, she creates digital content on General Knowledge. She can be reached at shikha.goyal@jagrannewmedia.com
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