आईआईएम से एमबीए: आईआईएम कलकत्ता के फॉर्मर डायरेक्टर-इन-चार्ज प्रोफेसर बी.एन श्रीवास्तव के साथ बातचीत

आईआईएम कलकत्ता के फॉर्मर डाइरेक्टर-इन-चार्ज प्रोफेसर बी.एन श्रीवास्तव इस बातचीत में मैनेजमेंट फील्ड तथा आईआईएम कलकत्ता, अन्य आईआईएम से किस तरह अलग है ? आदि से जुड़े कुछ विषयों पर चर्चा करेंगे.

MBA at IIMs: Interview with Former Director-in-Charge of IIM-Calcutta, Prof. B.N. Srivastava
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Q1. ऐसी कौन सी आधारभूत विशेषताएं हैं जो आईआईएम कलकत्ता को अन्य आईआईएम तथा अन्य टॉप बी स्कूल से अलग बनाती हैं ?

आईआईएम  कलकत्ता की अपनी स्थापना के बाद से लगभग 57 सालों की समृद्ध जर्नी रही है. इसकी स्थापना स्लोएन स्कूल ऑफ मैनेजमेंट एमआईटी के साथ पार्टनरशिप में हुई थी. इस इंस्टीट्यूट को ट्रिपल क्राउन का ख़िताब भी मिल चुका है तथा यह कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं का सदस्य है.एसईएमएस की पार्टनरशिप प्राप्त करनेवाला यह भारत का एकमात्र तथा एशिया का दूसरा संस्थान है. इसकी यह विशेषता इसे भारत के अन्य आईआईएम तथा टॉप बी स्कूल से अलग करती है.

Q2. ऐसा कहा जाता है कि भविष्य के नेता वही हैं जिनमें अनिश्चितता की स्थिति में भी आशा के साथ काम करने की ललक तथा क्षमता हो.आईआईएम कलकत्ता अपने कैम्पस में किस तरह से ऐसे लीडर्स तैयार करता है?

आईआईएम-सी में यह माना जाता है कि सभी पाठ्यक्रमों में अनिश्चितता हमारे टीचिंग प्रोसेस की पहचान है. इस इंस्टीट्यूट के पास कई एडवांस कोर्सेज हैं जिसके तहत संभावित तथ्यों के विषय में व्यापक रूप से समझाया या सीखाया जाता है.आईआईएम-सी के छात्र शुरुआत से ही ऐसे प्रैक्टिकल साइंस की ट्रेनिंग से गुजरते हैं जिसमें उन्हें भावनात्मक बुद्धिमत्ता (इमोशनल इंटेलिजेंस), भावनात्मक नियंत्रण (इमोशनल कंट्रोल) और भावनात्मक स्थिरता (इमोशनल स्टेबिलिटी) आदि के लक्षण तथा इसपर नियंत्रण करने का गुण सिखाया जाता हैं. यही कारण है कि आईआईएम सी के छात्र अपेक्षाकृत अधिक पैकेज पर प्लेस्ड होते हैं. प्रोफेसर बी.एन श्रीवास्तव का कहना है कि कोई भी ऑर्गनाइजेशन व्यक्ति विशेष की विशेष योग्यता को ट्रेनिंग के माध्यम से निखारता है. लेकिन हमारे यहाँ यह काम आरम्भ से यानी छात्र के एडमिशन लेने से प्रारम्भ कर दिया जाता है. यही वजह है कि  आईआईएमसी के छात्र अपने सुपीरियोरिटी का आनंद उठाते हैं.

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Q3. प्रोफेसर श्रीवास्तव जी, हमारा एक और सवाल है कि अधिकांश बी स्कूल अपने टीचिंग प्रोसेस में छात्रों को सही डिसीजन मेकर बनाने की प्रक्रिया पर जोर देते हैं. क्या आपकी राय में यह सही है या कोई अन्य स्किल है जो इसका पूरक है ?

जहाँ तक डिसीजन मेकिंग स्किल का सवाल है तो इस सम्बन्ध में प्रोफेसर बी एन श्रीवास्तव का कहना है कि वस्तुतः डिसीजन मेकिंग एक प्राइमरी क्वालिटी है और कोई भी इस क्वालिटी के साथ पैदा नहीं होता. हर किसी को अपने अन्दर इस क्वालिटी का विकास करना पड़ता है. अपने प्रारंभिक शिक्षा के आधार पर लोग इसे किस तरह विकसित करते हैं यह एक रहस्य ही है. आई आईएम सी के छात्र बहुत सारे इवेंट्स ऑर्गनाइज करते हैं और इस दौरान उन्हें पर्याप्त स्पेस तथा लेबोरेट्री अपने इस स्किल को विकसित करने के लिए मिलता है और वे इसका भरपूर लाभ उठाते हुए अपनी इस क्षमता का विकास अपने टास्क के दौरान ही करते हैं. क्लास रूम स्टडी के अतिरिक्त एक्सपीरिएंस बेस्ड एजुकेशन इस सम्बन्ध में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. आईआईएम सी अपने छात्रों को इंटरनेशनल एक्सपोजर का अवसर प्रदान करता है. इसके छात्र अंतर्राष्ट्रीय बिजनेस स्कूल्स में विजिट कर वहां के कल्चर,लैंग्वेज और अन्य गतिविधियों के बारे में पूर्ण जानकारी प्राप्त करने का प्रयास करते हैं. यहाँ छात्र विकट परिस्थितियों में भी जीवन जीने की कला सीखते हैं.

Q4. इस तेजी से बढ़ते डिजीटल युग में  आईआईएम कलकत्ता अपने पाठ्यक्रम को इंडस्ट्री की बदलती जरूरतों के अनुरूप कैसे प्रासंगिक बनाये रखता है ?

 आईआईएम सी पीजीपी प्रोग्राम ऑफर करता है. यह दो साल का फ्लैगशिप प्रोग्राम और एक साल का एक्जीक्यूटिव प्रोग्राम है. इस इंस्टीट्यूट द्वारा नियमित रूप से अपने करिकुलम को परिवर्तित तथा उसकी समीक्षा करने का पूर्ण प्रयास सभी फैकल्टी द्वारा किया जाता है. इसके बाद कोर्स स्ट्रक्चर का मूल्यांकन कर कुछ महीनों के बाद सिफारिशों के अनुरूप करिकुलम को लागू कर दिया जाता है.  

Q1. एक लोकप्रिय पश्चिमी दृष्टिकोण है कि बिना वर्क एक्सपीरिएंस के मैनेजमेंट एजुकेशन का कोई फायदा नहीं है क्योंकि कोई भी कॉन्टेक्स्ट के अभाव में सिद्धांत को नहीं समझ सकता है. इस पर आपके क्या विचार हैं?

प्रोफेसर बी.एन. श्रीवास्तव का मानना ​​है कि भारतवासी  दुनिया भर में अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं और यह पश्चिमी दृष्टिकोण बिलकुल सही है. आजादी के वर्षों बाद भी भारतीय विश्व से बाहर काम करने की इच्छा रखते हैं तथा एजुकेशन उनके इस सपने को पूरा करने में मदद करता है. अपनी पढ़ाई छोड़नेवाले भी अपने परिवार के नैतिक और आर्थिक सहयोग की मदद से पश्चिम में अपना बिजनेस शुरू कर सकते हैं. ऐसे अमीर लोग बिजनेस में जोखिम भी उठा सकते हैं. लेकिन भारतीय छात्रों के लिए हालात समान नहीं हैं.उनके लिए अपने आप को अपग्रेड करने का एकमात्र साधन एजुकेशन ही है. यहाँ तक कि आईआईएम सी की एडमिशन पॉलिसी में भी 5 वर्ष के अनुभव वाले उम्मीदवार को वरीयता दी जाती है. लेकिन इससे ज्यदा वालों को नहीं क्योकि इससे ज्यादा एक्सपीरियंस वाले को इंडस्ट्री वाले एक्सेप्ट नहीं करते हैं. आईआईएम सी का पीजीपी एक्स जिसके तहत वर्किंग प्रोफेशनल्स को ट्रेनिंग दिया जाता है, के एक प्रावधान के अंतर्गत कैम्पस से एक छात्र जापान की विजिट करता है. इतना ही नहीं कम अनुभव वाले छात्र भी अपने देश में होने वाले इन्नोवेशन से सीख लेते हैं. इस तरह कम और बिना अनुभव वाले छात्र भी बहुत जल्दी 5 वर्ष वाले के समान ही काम करने लगते हैं.इसके अतिरिक्त केस स्टडी,समर इंटर्नशिप आदि कई अन्य प्रोग्राम भी यहाँ कराये जाते हैं जिनके माध्यम से छात्र कार्पोरेट जीवन की वास्तविकताओं से अवगत होते हैं.

Q2. आजकल हालात बदल रहे हैं, लेकिन दो साल का औसत अनुभव प्राकृतिक कोरोलरी की तरह है. आपने एक  दिलचस्प मिथक के बारे में उल्लेख किया है. इसलिए  मैं यह समझना चाहता था कि बी-स्कूल एजुकेशन से जुड़े कुछ अन्य लोकप्रिय मिथक क्या हैं और उनको किस तरह दूर किया जा सकता है ?

अगर मिथकों के बारे में बात करें तो ऐसा समझा जाता है कि मैनेजमेंट डेटा एनालिसिस है लेकिन इसके विपरीत मैनेजर्स को अपने अंतर्दृष्टि के जरिये  भी काम करना पड़ता है. सभी डेटा एनालिसिस, बिग डेटा एनालिसिस के बावजूद जब टॉप मैनेजमेंट के सवालों का जवाब देना होता है तो वहां मैनेजर्स की अपनी अंतर्दृष्टि ही काम आती है. बी.स्कूल के बारे में एक और मिथक यह है कि यहाँ पुरुषों का वर्चस्व रहता है. लेकिन आईआईएम सी जेंडर डायवर्सिटी की  कदर करते हुए 30 प्रतिशत रिजर्वेशन महिला एवं एससी तथा एसटी उम्मीदवारों को देती है. तीसरा मिथक उम्मीदवार पर बी-स्कूल के ब्रांड के बारे में है. यदि कोई छात्र अपनी पूरी अटेंडेंस कवर नहीं करता है तो उसके प्रति सख्त रवैया अपनाया जाता है तथा उसे नन परफॉर्मर माना जाता है. कोई भी उन्हें इवैल्यूएशन में अच्छे ग्रेड नहीं दे सकता और यही वजह है कि टॉप आईआईएम की कैटेगरी में आईआईएम सी अपना स्थान रखता है.

Q3. आपके अनुसार बी-स्कूल का चयन करते समय एमबीए उम्मीदवारों को किन किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ?

प्रोफेसर बी.एन. श्रीवास्तव के अनुसार सहकर्मी समूह और पूर्व छात्रों के साथ एक अच्छी चर्चा इस संबंध में काफी महत्वपूर्ण है. व्यावसायिक पत्रिकाओं, समाचार पत्रिकाओं और टेलीविज़न वार्ता आदि से भी बी-स्कूल के चयन में काफी मदद मिलती है. बी स्कूल के पूर्व छात्रों से इस विषय में राय लेना पक्षपातपूर्ण हो सकता है क्योंकि कोई भी अपने इंस्टीट्यूट के बारे में कुछ भी गलत कहना नहीं चाहता है. किसी भी बी स्कूल में एडमिशन लेने से पहले आंकड़ो के आधार पर उसकी प्लेसमेंट, प्लेस हुए छात्र का सैलरी स्ट्रक्चर आदि पर विशेष रूप से गौर करना चाहिए. यह भी जानना जरुरी है कि उनमें से कितने टॉप मैनेजमेंट में काम करते हैं तथा कितने इंटरप्रेन्योर हैं ?

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