ल ही में गृह मंत्रालय द्वारा जारी की गयी रिपोर्ट में कहा गया कि भारत में बोली जाने वाली 42 भाषाएं तथा बोलियां संकट में हैं. इस रिपोर्ट के अनुसार इन 42 भाषाओं एवं बोलियों का इस्तेमाल करने वाले कुछ ही हज़ार लोग हैं जिसके चलते इनका यह हश्र हुआ है.
गृह मंत्रालय के तहत कार्यरत जनगणना निदेशालय की रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में 22 अधिसूचित तथा 100 गैर-अधिसूचित भाषाएं हैं जिन्हें एक लाख या इससे अधिक लोग बोलते हैं. संयुक्त राष्ट्र ने भी ऐसी 42 भारतीय भाषाओं या बोलियों की सूची तैयार की है. यह सभी खतरे में हैं और धीरे-धीरे विलुप्त होने की ओर बढ़ रही हैं.
विलुप्त होने की कगार पर भारतीय भाषाएं
• संकटग्रस्त भाषाओं में 11 अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की हैं. इनके नाम हैं: ग्रेट अंडमानीज, जरावा, लामोंगजी, लुरो, मियोत, ओंगे, पु, सनेन्यो, सेंतिलीज, शोम्पेन और तकाहनयिलांग हैं.
• मणिपुर की सात संकटग्रस्त भाषाएं एमोल, अक्का, कोइरेन, लामगैंग, लैंगरोंग, पुरुम और तराओ इस सूची में शामिल हैं.
• हिमाचल प्रदेश की चार भाषाएं- बघाती, हंदुरी, पंगवाली और सिरमौदी भी खतरे में हैं.
• ओडिशा की मंडा, परजी और पेंगो भाषाएं संकटग्रस्त भाषाओं की सूची में शामिल हैं.
• कर्नाटक की कोरागा और कुरुबा जबकि आंध्र प्रदेश की गडाबा और नैकी विलुप्त होने के कगार पर हैं.
• तमिलनाडु की कोटा और टोडा भाषाएं विलुप्तप्राय हो चुकी हैं.
• असम की नोरा और ताई रोंग भी खतरे में हैं.
• उत्तराखंड की बंगानी, झारखंड की बिरहोर, महाराष्ट्र की निहाली, मेघालय की रुगा और पश्चिम बंगाल की टोटो भी विलुप्त होने की कगार पर पहुंच रही हैं.
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भाषाओं के संरक्षण हेतु उठाये जा रहे कदम
मैसूर स्थित भारतीय भाषाओं के केंद्रीय संस्थान देश की खतरे में पड़ी भाषाओं के संरक्षण और अस्तित्व की रक्षा करने के लिए केंद्रीय योजनाओं के तहत कई उपाय कर रहा है. इन कार्यक्रमों के तहत व्याकरण संबंधी विस्तृत जानकारी जुटाना, एक भाषा और दो भाषाओं में डिक्शनरी तैयार करने के काम किए जा रहे हैं. इसके अलावा, भाषा के मूल नियम, उन भाषाओं की लोककथाओं, इन सभी भाषाओं या बोलियों की खासियत को लिखित में संरक्षित किया जा रहा है. यह सभी वह भाषाएं हैं जिन्हें दस हजार से भी कम लोग बोलते हैं.
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