प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में अल्टरनेटिव मैकेनिज्म के माध्यम से सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों के विलय को सैद्धांतिक रूप से मंजूरी दे दी गई है. इस निर्णय से राष्ट्रीयकृत बैंकों के विलय के फलस्वरूप सशक्त और प्रतिस्पर्धी बैंकों के निर्माण में मदद मिलेगी.
सरकार के द्वारा बैंकों में विलय एवं एकीकरण के खिलाफ यह फैसला सार्वजिनक क्षेत्र के बैंक कर्मचारियों की एक दिन की हड़ताल करने के एक दिन बाद सामने आया है.
एकीकरण के सैद्धांतिक मंजूरी के प्रस्ताव को वैकल्पिक व्यवस्था के तहत जांचा परखा जाएगा. अरुण जेटली ने एकीकरण के पीछे तर्क बताते हुए कहा कि इससे बैंकों की वाणिज्यिक ताकत बढ़ेगी और एक ही स्थान में संसाधनों के इस्तेमाल को रोका जा सकेगा.
मुख्य तथ्य:
• बैंकों को मजबूत और प्रतिस्पर्धी बनाने के संबंध में यह निर्णय मुख्य रूप से वाणिज्यिक दृष्टि को ध्यान में रखकर किया गया है.
• विलय की योजनाओं को तैयार करने के लिए बैंकों से प्राप्त प्रस्तावों के सैद्धांतिक रूप से अनुमोदन के लिए प्रस्तावों को अल्टरनेटिव मैकेनिज्म (एएम) के समक्ष रखा जाएगा.
• ऐसा प्रस्ताव बैंकों के बोर्डों से रखा जाना जरूरी होगा.
• सैद्धांतिक मंजूरी मिलने के बाद बैंक कानून और सेबी की अपेक्षाओं के अनुसार कदम उठाएंगे.
• केन्द्र सरकार द्वारा भारतीय रिजर्व बैंक के साथ परामर्श करके अंतिम योजना को अधिसूचित किया जाएगा.
पृष्ठभूमि:
वर्ष 1991 में यह सुझाव दिया गया था कि भारत में कुछ ही लेकिन मजबूत सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक होने चाहिए. हालांकि वर्ष 2016 के मई से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के विलय की प्रभावी कार्यवाही शुरू हुई और छह बैंकों के भारतीय स्टेट बैंक में विलय की घोषणा की गई. यह विलय स्टेट बैंक ऑफ इंदौर एवं सौराष्ट्र के पूर्ववर्ती विलय की तुलना में रिकॉर्ड समय में पूरा हो गया था.
भारतीय स्टेट बैंक अब करीब 24000 शाखाओं, 59000 एटीएम, 6 लाख पीओएस मशीनों तथा 50000 से ज्यादा बिजनेस कॉरपोडेंटेंड वाला अकेला बैंक है जो देश के सभी भागों में अपनी सेवा प्रदान कर रहा है. भारतीय स्टेट बैंक के नेटवर्क में 70 प्रतिशत शाखाएं और ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में कार्यरत हैं. भारतीय स्टेट बैंक को छोड़कर इस समय 20 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक मौजूद हैं.
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