प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडल समिति ने किसानों को वित्तीय और जल सुरक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान (कुसुम) का शुभारंभ करने की मंजूरी दी.
इस योजना के लिए केंद्र सरकार 34,422 करोड़ रुपए का वित्त उपलब्ध कराएगी. इसका उद्देश्य 2022 तक 25.75 गीगावाट की सौर ऊर्जा क्षमताओं का दोहन कर किसानों को वित्तीय और जल सुरक्षा उपलब्ध कराना है.
योजना के घटक:
प्रस्तावित योजना के तीन घटक हैं.
घटक ए: नवीकरणीय ऊर्जा संयंत्रों से 10,000 मेगावाट के भूमि के ऊपर बनाए गए विकेन्द्रीकृत ग्रिडों को जोड़ना.
घटक बी: 17.50 लाख सौर ऊर्जा चालित कृषि पंपों को लगाना.
घटक सी: 10 लाख ग्रिड से जुड़े सौर ऊर्जा चालित कृषि पंपों का सौरकरण.
तीनों घटको को सम्मिलित करने से संबंधित इस योजना का लक्ष्य वर्ष 2022 तक 25,750 मेगावाट सौर क्षमता जोड़ना है.
घटक ए और घटक सी को पायलट आधार पर लागू किया जाएगा. घटक ए के तहत 1000 मेगावाट क्षमता का निर्माण किया जाएगा तथा घटक सी के अंतर्गत एक लाख कृषि पंपों को ग्रिड से जोड़ा जाएगा. पायलट योजना की सफलता के बाद इसे बड़े पैमाने पर कार्यान्वित किया जाएगा. घटक बी को संपूर्ण रूप से लागू किया जाएगा.
घटक ए:
घटक ए के तहत, किसान/सहकारी समितियां/पंचायत /कृषि उत्पादक संघ (एफपीओ) अपनी बंजर या कृषि योग्य भूमि पर 500 किलोवाट से लेकर 2 मेगावाट क्षमता वाले नवीकरणीय ऊर्जा संयंत्र स्थापित कर सकेंगे. बिजली वितरण कंपनियां उत्पादित ऊर्जा की खरीद करेंगी. दर का निर्धारण एसईआरसी करेंगी. इस योजना से ग्रामीण भू-स्वामियों को स्थायी व निरंतर आय का स्रोत प्राप्त होगा. प्रदर्शन के आधार पर बिजली वितरण कंपनियों को पांच वर्षों की अवधि के लिए 0.40 रुपये की दर से प्रोत्साहन दिया जाएगा.
घटक बी:
घटक बी के तहत, किसानों को 7.5 एचपी क्षमता तक के सौर पंप स्थापित करने के लिए सहायता प्रदान की जाएगी. इस योजना में पंप क्षमता को सौर पीवी क्षमता (केवी में) के समान मानने की अनुमति दी गई है.
घटक सी:
योजना के घटक सी के अंतर्गत किसानों को 7.5 एचपी की क्षमता वाले पंपों के सौरकरण के लिए सहायता प्रदान की जाएगी. इस योजना में पंप क्षमता को दोगुने सौर पीवी क्षमता के समान माना गया है. किसान उत्पादित ऊर्जा का उपयोग सिंचाई जरूरतों के लिए कर पाएंगे तथा अतिरिक्त ऊर्जा बिजली वितरण कंपनियों को बेच पाएंगे. इससे किसानों को अतिरिक्त आय प्राप्त होगी और राज्य अपने पीआरओ लक्ष्य को प्राप्त कर पाएंगे.
घटक-बी और घटक-सी की फंडिंग:
घटक बी और घटक सी के लिए मानदंड लागत का 30 प्रतिशत या निविदा लागत, इनमें जो भी कम हो, के लिए केन्द्रीय वित्तीय सहायता (सीएफए) प्रदान की जाएगी. राज्य सरकार 30 प्रतिशत की सब्सिडी देगी और शेष 40 प्रतिशत खर्च का वहन किसानों को करना होगा.
लागत के 30 प्रतिशत खर्च के लिए बैंक सहायता भी प्राप्त की जा सकती है. शेष 10 प्रतिशत लागत किसान के द्वारा उपलब्ध कराई जाएगी. पूर्वोत्तर राज्यों, सिक्किम, जम्म–कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, लक्षदीप और अंडबार-निकोबार दीप समूहों में 50 प्रतिशत केन्द्रीय वित्तीय सहायता (सीएफए) उपलब्ध कराई जाएगी.
प्रभाव:
इस योजना से कार्बन डाईआक्साइड में कमी आएगी और वायुमंडल पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. योजना के तीनों घटकों को सम्मिलित करने में पूरे वर्ष में कार्बन डाईआक्साइड उत्सर्जन में 27 मिलियन टन की कमी आएगी.
घटक बी के अंतर्गत सौर कृषि पंपों से प्रतिवर्ष 1.2 बिलियन लीटर डीजल की बचत होगी. इससे कच्चे तेल के आयात में खर्च होने वाली विदेशी मुद्रा की भी बचत होगी. इस योजना में रोजगार के प्रत्यक्ष अवसरों को सृजित करने की क्षमता है. स्व–रोजगार में वृद्धि के साथ इस योजना से कुशल व अकुशल श्रमिकों के लिए 6.31 लाख रोजगार के नए अवसरों के सृजन होने की संभावना है.
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