रंगभेद के खिलाफ संघर्ष करने वाले दक्षिण अफ्रीका (South African) के डेसमंड टूटू (Desmond Tutu) का 26 दिसंबर 2021 को निधन हो गया. वे 90 साल के थे. टूटू के निधन के बारे में दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा ने जानकारी दी. राष्ट्रपति ने कहा कि आर्कबिशप एमेरिटस डेसमंड टूटू (South African equality activist) के निधन से एक अध्याय समाप्त हो गया है.
The passing of Archbishop Emeritus Desmond Tutu is another chapter of bereavement in our nation’s farewell to a generation of outstanding South Africans who have bequeathed us a liberated South Africa. pic.twitter.com/vjzFb3QrNZ
— Cyril Ramaphosa 🇿🇦 (@CyrilRamaphosa) December 26, 2021
डेसमंड टूटू को दक्षिण अफ्रीका में श्वेत अल्पसंख्यकों के शासन का मुकाबला करने के लिए 1984 में नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने उनके निधन पर शोक जताया. प्रधानमंत्री मोदी ने टूटू के निधन पर शोक व्यक्त किया और श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि वह विश्व स्तर पर अनगिनत लोगों के लिए एक मार्गदर्शक थे और मानवीय गरिमा एवं समानता के प्रति उनकी भूमिका को हमेशा याद रखा जाएगा.
Archbishop Emeritus Desmond Tutu was a guiding light for countless people globally. His emphasis on human dignity and equality will be forever remembered. I am deeply saddened by his demise, and extend my heartfelt condolences to all his admirers. May his soul rest in peace.
— Narendra Modi (@narendramodi) December 26, 2021
इन मुद्दों पर आवाज उठाई
डेसमंड टूटू को रंगभेद के विरोध और एलजीबीटी अधिकारों के संघर्ष के लिए जाना जाता था. इसके साथ ही उन्होंने एचआईवी/एड्स, गरीबी, नस्लवाद, होमोफोबिया और ट्रांसफोबिया जैसे मुद्दों को लेकर लगातार अपनी आवाज उठाई.
नस्ली भेदभाव के खिलाफ लड़ी लंबी लड़ाई
रंगभेद के विरोधी, अश्वेत लोगों के दमन वाले दक्षिण अफ्रीका के क्रूर शासन के खात्मे के लिए डेसमंड टूटू ने अहिंसक रूप से अथक प्रयास किए. जोहानिसबर्ग के पहले अश्वेत बिशप और बाद में केप टाउन के आर्चबिशप के रूप में उन्होंने अपने उपदेश-मंच का इस्तेमाल करते हुए घरेलू तथा वैश्विक स्तर पर नस्ली भेदभाव के खिलाफ जनता की राय को मजबूत करने की दिशा में लगातार सार्वजनिक प्रदर्शन किया.
डेसमंड टूटू: एक नजर में
• डेसमंड टूटू का जन्म 1931 में जोहान्सबर्ग के शहर क्लार्कडॉर्प में हुआ था. इनके पिता स्कूल टीचर थे. इन्हें साल 1984 में शांति का नोबेल पुरस्कार दिया गया था.
• वे साल 1986 में केपटाउन के आर्चबिशप बने. नेल्सन मंडेला ने राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद टूटू को मानवाधिकारों के हनन की जांच करने वाले आयोग का अध्यक्ष बनाया था.
• साल 1997 में प्रोस्टेट कैंसर का पता चलने के बाद लगातार इलाज चलता रहा. भारत ने उन्हें साल 2007 में गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित किया था.
• टूटू हाल के वर्षों में राज्य के उद्यमों की लूटपाट के भी मुखर आलोचक रहे. उन्होंने सत्तारूढ़ अफ्रीकी राष्ट्रीय कांग्रेस (एएनसी) को भी नहीं बख्शा जिसके वह पूरी जिंदगी एक गौरवान्वित सदस्य रहे.
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