दिल्ली उच्च न्यायालय ने 26 अप्रैल 2017 को फैसला सुनाते हुए कहा कि बकाया बिल न चुकाए जाने की अवस्था में अस्पताल रोगियों को बंधक बनाकर नहीं रख सकते.
न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति दीपा शर्मा की पीठ ने कहा कि यदि बिलों का भुगतान नहीं किया जाता है तो ऐसी अवस्था में रोगी को अस्पताल से छुट्टी दे दी जानी चाहिए. न्यायालय ने रोगियों को बंधक बनाये जाने की भी निंदा की.
अदालत ने मध्य दिल्ली के एक प्राइवेट अस्पताल से कहा कि यदि रकम बकाया हो तो भी बकाया बिल वसूलने के लिए रोगियों को बंधक नहीं बनाया जा सकता. हम इस चलन की निंदा करते हैं. अदालत ने अस्पताल को रोगी को अस्पताल से छुट्टी के कागजात बनाने और उसके बेटे एवं याचिकाकर्ता को अस्पताल से अपने पिता को ले जाने का निर्देश दिया.
उच्च न्यायालय ने एक रोगी के बेटे की एक याचिका पर यह आदेश दिया है. रोगी मध्य प्रदेश का एक पूर्व पुलिसकर्मी है. इलाज के लिए उसे फरवरी 2017 में अस्पताल में भर्ती कराया गया था. याचिका में रोगी के बेटे ने आरोप लगाया था कि 13.45 लाख रुपये के बकाया रकम वसूलने के लिए अस्पताल ने उसके रोगी पिता को बंधक बना कर रखा है.
याचिकाकर्ता के अनुसार कुल बिल 16.75 लाख रुपये था और याचिकाकर्ता ने केवल 3.3 लाख रुपये अदा किये. अस्पताल ने बताया कि रोगी को सामान्य वार्ड में भेजने के बाद 21 अप्रैल को सर्जरी की गयी जबकि याचिकाकर्ता का दावा है 20 अप्रैल को पुलिस में शिकायत करने के बाद सर्जरी की गयी.
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