ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) विश्वभर के लिए एक बड़ी चुनौती बनकर उभर रही है. आपको बता दें कि विश्व के कई देशों में ग्लोबल वार्मिंग को लेकर परेशान करने वाले हालात बन रहे है. संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) ने इसी को लेकर एक रिपोर्ट जारी की है.
रिपोर्ट के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) के 1.5°C और 2°C के तापमान बढ़ने के परिणामों का विश्लेषण किया गया है. वैश्विक तापमान में वृद्धि से तूफान, बाढ़, जंगल की आग, सूखा तथा लू के खतरे की आशंका बढ़ जाती है. ग्लोबल वार्मिंग औद्योगिक क्रांति के बाद से औसत वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी को दर्शाता है.
समुद्री लेवल में बढ़ोतरी
रिपोर्ट के मुताबिक, यदि ग्लोबल वार्मिंग के वजह से पूर्व औद्योगिक स्तर की अवधि (pre industrial level period) से तापमान 1.5°C और 2°C बढ़ता है तो इसके परिणाम भयावह साबित हो सकते है. ग्लोबल वार्मिंग से समुद्री लेवल में बढ़ोतरी होगी.
यदि 1.5°C तापमान बढ़ता है तो समुद्री लेवल बढ़ने से 60 लाख लोगो के जीवन पर असर पड़ेगा. वही अगर यही तापमान 2°C बढ़ता हैं तो 1 करोड़ 60 लाख लोगो पर इसका प्रभाव पड़ेगा. इस आधे डिग्री सेल्सियस तापमान के बढ़ने से मूंगा - चट्टान (coral reef) के 99 प्रतिशत खत्म होने का खतरा रहेगा.
ग्रीष्म लहर के खतरे का सामना
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया की 30 प्रतिशत आबादी साल के 20 दिनों से अधिक समय तक ग्रीष्म लहर (heat wave) के खतरे का सामना कर रही है.
सबसे गर्म साल
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) की रिपोर्ट के मुताबिक, विश्व के 6 सबसे गर्म साल 2015 के बाद दर्ज़ किए गए हैं. इनमे साल 2016, साल 2019 और साल 2020 सबसे गर्म साल रहे हैं. भारत में भी हम इसका प्रभाव देख पा रहे है.
विश्व मौसम विज्ञान संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2015-19 तक के पांच सालों का औसतन तापमान और साल 2010-19 तक के दस सालों का औसतन तापमान सबसे अधिक दर्ज़ किया गया है.
ग्लोबल वार्मिंग का सबसे मुख्य कारण
ग्लोबल वार्मिंग का सबसे मुख्य कारण ग्रीन हाउस गैसेस के उत्सर्जन को माना जा रहा है. साल 2019 में कुल ग्रीन हाउस गैसेस का उत्सर्जन कार्बन डाइऑक्साइड के 59.1 gigatonnes के बराबर था. इसके वजह से साल 2019, साल 2016 के बाद अब तक का दूसरा गर्म साल रहा.
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