जापान की संसद ने भारत के साथ हुई सिविल एटमी डील को मंजूरी दे दी है, जिससे भारत को वहां से एटमी मटीरियल और तकनीक पाने का रास्ता साफ होगा. विश्व में एटमी अटैक झेलने वाले एकमात्र देश जापान ने पहली बार किसी ऐसे देश के साथ न्यूक्लियर डील की है, जिसने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं.
दोनों देशों को अब अपने अपने यहां न्यूक्लियर अथॉरिटी से जुड़े नियमों में संशोधन करना होगा. संशोधन के दस्तावेजों के लेन-देन के बाद संधि प्रभावी हो जाएगी. अगर भारत ने एटमी टेस्ट पर रोक का 2008 का वादा तोड़ा तो वह डील रोक देगा.
भारत को न्यूक्लियर मटीरियल रीप्रोसेस करने की इजाजत होगी, लेकिन परमाणु हथियार बनाने में इस्तेमाल होने की संभावना वाला एनरिच्ड यूरेनियम नहीं बना सकता. भारत को इंटरनैशनल अटॉमिक एनर्जी एजेंसी के इन्स्पेक्शन के लिए तैयार रहना होगा.
वर्ष 2010 में डील पर बात शुरू हुई थी और नवंबर 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जापान यात्रा के दौरान डील के समझौते पर मुहर लगी थी. इस समझौता के तहत भारत में न्यूक्लियर पावर प्रॉजेक्टों का विकास किया जाएगा. इसके लिए भारतीय और जापानी कंपनियों के बीच सहयोग के नए रास्ते खुलेंगे.
न्यूक्लियर एनर्जी प्लांटों में सेफ्टी के लिहाज से जापान के इंतजामों को विश्व में बेहतरीन माना जाता रहा है.
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