केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अगले वित्त वर्ष (2017-18) से केंद्रीय बजट और रेल बजट को अलग– अलग पेश करने की परंपरा को खत्म करने का फैसला किया है। यह फैसला 92 वर्षों से चले आ रहे बजट को पेश करने के औपनिवेशिक विरासत को खत्म कर देगा। साथ ही यह फैसला केंद्र सरकार के लिए लोकलुभावन सब्सिडियों में कटौती और संरचनात्मक सुधार करने का मार्ग भी प्रशस्त करेगा। भारतीय रेलवे दुनिया की चौथी सबसे बड़ी रेल व्यवस्था है। यह 13 लाख (1.3 मिलियन) लोगों को रोजगार दे रही है और प्रत्येक वर्ष यह करीब 40 अरब रुपयों (596.81 मिलियन डॉलर) का शुद्ध लाभ कमाती है।
रेल बजट को अलग से पेश किए जाने की शुरुआत 1924 में हुई थी और स्वतंत्रता के बाद भी संवैधानिक प्रावधानों की बजाए परंपरा के तौर पर ऐसा किया जाना जारी रखा गया।
विलय से निम्नलिखित तरीकों से मदद मिलने की उम्मीद हैः
1. एकीकृत बजट की प्रस्तुति रेलवे से जुड़े मामलो को केंद्र में लाएगा और सरकार की वित्तीय स्थिति की समग्र तस्वीर पेश करेगा।
2. इस विलय से प्रक्रियात्मक आवश्यकताओं के कम होने और फोकस में लाने की बजाए वितरण एवं सुशासन के पहलुओं पर ध्यान दिए जाने की उम्मीद है।
3. विलय के परिणामस्वरूप, रेलवे के लिए स्वायत्तीकरण मुख्य विनियोग विधेयक का हिस्सा बनेगा।
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आम बजट में रेल बजट के विलय के अलावा बजट प्रस्तुति की तारीख पर वित्त मंत्रालय द्वारा दिए गए सुझावों से भी सहमत है। फरवरी महीने के अंतिम दिन जब यह बजट प्रस्तुत किया जाता है अक्सर भारत संक्रमण काल से गुजर रहा होता है। इस समय विजयी हो कर उभरा नया राजनीतिक मोर्चे के साथ केंद्र में सत्ता में आने की तैयारी में रहता है। यह विलय बजट और लेखा में नियोजित और गैर– नियोजित वर्गीकरण का भी विलय करेगा। यह काफी पहले रंगराजन समिति द्वारा की गई सिफारिश के आधार पर किया जा रहा है। ये सभी बदलाव 2017-18 के बजट से प्रभावी हो जाएंगे।
इन बदलावों के साथ आने वाले वर्षों में बजट अधिक पारदर्शी, पूर्वानुमेय हो जाएगा और उसमें खर्च पर अधिक और राजस्व पर कम जोर दिया जाएगा।
यह विलय केंद्र– राज्य संबंधों को और मजबूत बनाएगा क्योंकि चौदहवें वित्त आयोग (एफएफसी) की सिफारिशें लागू हो चुकीं हैं। सिफारिशों ने केंद्र के शुद्ध कर राजस्व में राज्य को उनके खर्चों और भारत भर में वस्तुओं एवं सेवा कर को लागू करने का फैसला करने की अधिक स्वतंत्रता के साथ राज्य की हिस्सेदारी को बढ़ा दिया है।
यह विलय क्यों?
हालांकि, केंद्रीय बजय में रेल बजट का विलय मंत्रिमंडल ने सिर्फ एक शर्त पर मंजूर किया है। शर्त है– रेलवे बतौर विभाग द्वारा संचालित वाणिज्यिक उपक्रम के तौर पर अपनी अलग पहचान को बनाए रखेगी और मौजूदा दिशानिर्देशों के अनुसार रेलवे को उनकी कार्यात्मक स्वायत्ता और वित्तीय अधिकार आदि मिलेगा। मौजूदा वित्तीय समझौते जारी रहेंगे जिनमें रेलवे अपने राजस्व संबंधी सभी खर्चों को पूरा करेगी। इसमें रेलवे का अपने राजस्व प्राप्तियों से सामान्य कार्य खर्च, वेतन और भत्ते, पेंशन आदि को वहन करना भी शामिल है। रेलवे के लिए शुल्क पर पूंजी (Capital at charge) का अनुमान 2.27 लाख करोड़ रुपये अनुमानित है जिसपर रेलवे को सालाना लाभांश का भुगतान करना पड़ता है, इसे समाप्त किया जाएगा।
नतीजनत, 2017-18 से रेलवे पर लाभांश का कोई दायित्व नहीं होगा और रेल मंत्रालय को सकल बजट समर्थन मिलेगा। इसकी वजह से अब रेलवे को हर वर्ष भारत सरकार को करीब 9,700 करोड़ रुपयों के लाभांश का भुगतान नहीं करना होगा।
कुछ रिपोर्टों के अनुसार इस विलय का एक कारण यह भी लगता है कि हर वर्ष सरकार बजटीय सहयोग के नाम पर रेलवे द्वारा भुगतान किए जाने वाले सालाना लाभांश को माफ कर देती थी जिससे रेलवे को सालाना 10,000 करोड़ रुपये की बचत होती है।
इसके अलावा यह भी आरोप लगाया जा रहा है कि इस पैसे का इस्तेमाल वर्तमान में सरकार की छवि को सुधारने के लिए लोकलुभावन सब्सिडियों के तौर पर किया जाएगा। यहां इस बात का उल्लेख करना भी महत्वपूर्ण है कि भारत में फिलहाल कोई अन्य मंत्रालय नहीं है जो अलग से अपना बजट प्रस्तुत करता है और केंद्रीय बजट एवं रेल बजट को अलग– अलग प्रस्तुत किए जाने की परंपरा पूरी दुनिया में कहीं भी नहीं है। इसके अलावा, बिबेक देबरॉय समीति ने सरकार के सुधार कार्यक्रम के हिस्से के तौर पर इस व्यवस्था को समाप्त करने की सिफारिश की है।
प्रभाव:
केंद्रीय बजट और रेल बजट के विलय के साथ रेलवे का सभी नुकसान, ऋण या बकाया केंद्र की जिम्मेदारी हो जाएगी। रेल मंत्री प्रबंध करने, रेलवे की स्थिरता और लाभांशों के भुगतान के राजनीतिक दबाव से मुक्त हो जाएंगे।
ऐसे में, लगता है कि भारतीय रेलवे कमोबेश डाक विभाग की तरह हो जाएगा जहां लाभ, हानि और खर्च केद्रीय बजट का हिस्सा होता है। यह उम्मीद की जाती है कि सभी बकाया, खर्चों, वेतनों को यदि केंद्रीय बजट में शामिल किया गया तो राजकोषीय घाटा और अधिक हो सकता है।
बजट की प्रस्तुति के पुनर्गठन में कई पहलू हैं, जैसे –
1. हानि और बकाए को कम करने के लिए सरकार मालभाड़े और किराए में बढ़ोतरी कर सकती है। सब्सिडी के रूप में निभाई जाने वाली सामाजिक जिम्मेदारियों को स्वहित से अलग किया जा सकता है और सिर्फ कुछ क्षेत्रों तक सीमित किया जा सकता है।
2. रेलवे में परिवहन, नेटवर्किंग, दुर्घटनाओं को नियंत्रित करने, समय पर विनिमय आदि में सुधार के लिए स्वतंत्र नियामक सरकार बना सकती है। इसके लिए बिबेक देबरॉय समिति की सिफारिशों के अनुसार अलग– अलग कंपनियां या होल्डिंग कंपनियां बनाईं जा सकती हैं।
3. खर्च को कम करने के लिए रेलवे के स्कूलों और अस्पतालों को स्थानांतरित किया या बेचा जा सकता है।
4. संरचनात्मक, परिवहन आदि से जुड़ीं प्रमुख सुधार कार्यों के लिए समय– समय पर निजी निवेश आमंत्रित किए जा सकते हैं।
बजट में नियोजित और गैर– नियोजित वर्गीकरण
तीसरा प्रस्ताव जिसे मंत्रिमंडल ने मंजूर किया था वह था अगले वित्त वर्ष से बजट और लेखा में नियोजित और गैर– नियोजित वर्गीकरण का विलय। हालांकि इससे अनुसूचित जाति उप– योजना/ आदिवासी उप– योजना और उत्तर पूर्वी राज्यों को दिए जाने वाली धनराशि पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
इससे निम्नलिखित मुद्दों को हल करने में मदद मिलेगी–
1. खर्च का नियोजित/ गैर– नियोजित विभाजन विभिन्न योजनाओं के लिए संसाधनों के आवंटन का खंडित व्यू देता है। यह एक सेवा के लिए निश्चित लागत निर्धारित करना ही मुश्किल नहीं करता बल्कि नतीजों के लिए खर्च को जोड़ना भी मुश्किल बना देता है।
2. केंद्र के साथ– साथ राज्य सरकारों का नियोजित खर्च के पक्ष में पूर्वाग्रह अनिवार सामाजिक सेवाएं प्रदान करने के लिए संपत्तियों और अन्य प्रतिष्ठानों के रख–रखाव पर होने वाले अनिवार्य खर्चों को नजरअंदाज करा देता है।
3. बजट में नियोजित और गैर– नियोजित के विलय से उम्मीद की जा रही है कि राजस्व और पूजीगत खर्च पर फोकस के साथ उचित बजटीय रूपरेखा मिलेगी।
यह कदम इस पृष्ठभूमि में उठाया गया है कि नियोजित और गैर– नियोजित के बजाए, पूंजी के तौर पर खर्च का वर्गीकरण राजस्व घाटे को कम करने पर फोकस बढ़ाकर एवं पूंजीगत खर्च में सुधार लागकर राजकोषीय घाटे को कम करेगा।
अंत में, हम सरकार को सिर्फ सुझाव दे सकते हैं कि यदि इस पुनर्गठन को स्पष्टता के साथ नहीं किया गया तो इसका प्रभाव उल्टा भी हो सकता है। इसलिए सरकार को अच्छी चीजों को नहीं समाप्त करना चाहिए। भारतीय रिजर्व बैंक के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार सरकार को पारदर्शिता बनाए रखने के लिए रेलवे की सालाना रिपोर्ट संसद में प्रस्तुत करनी चाहिए।
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