भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव के 86वें शहीदी दिवस पर राष्ट्र ने श्रद्धांजलि अर्पित की

Mar 23, 2017, 10:06 IST

ब्रिटिश शासकों ने लाहौर की जेल में इन तीनों स्वतंत्रता सेनानियों को 23 मार्च 1931 को फांसी दे दी थी.

भारत ने 23 मार्च 2017 को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के शहीदी दिवस पर उनको श्रद्धान्जलि अर्पित की. भारत में 23 मार्च को 86वां शहीदी दिवस मनाया गया.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्विटर पर सन्देश जारी करते हुए कहा कि देश इनका सदैव आभारी रहेगा तथा इनकी शहादत को सदैव याद रखेगा.

ब्रिटिश शासकों ने लाहौर की जेल में इन तीनों स्वतंत्रता सेनानियों को 23 मार्च 1931 को फांसी दे दी थी. उन पर ब्रिटिश शासन के खिलाफ षड्यंत्र रचने का आरोप लगाया गया तह उन्हें तय समय से एक दिन पूर्व ही फांसी दे दी गयी थी. इन तीनों शहीदों के पार्थिव शरीर को सतलुज नदी के किनारे मुखाग्नि दी गयी थी.

इन तीनों पर जॉन सांडर्स की हत्या का आरोप लगाया गया. भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने सांडर्स को लाला लाजपत राय की मृत्यु के बदले में मारा था. लाला लाजपतराय भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान सेनानी थे जिन्होंने देश सेवा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी. यही कारण था कि भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद जैसे देशभक्त उनका सम्मान करते थे.

भगत सिंह, राजगुरु व सुखदेव के शहीदी दिवस देश भर में कई संगठनों द्वारा कार्यक्रमों का आयोजन किया गया. शहीद भगत सिंह समारोह समिति में इस अवसर पर सुबह में प्रभात फेरी निकाली गयी. प्रभातफेरी के बाद शहीद भगत सिंह की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया. शहीद भगत सिंह के क्रांतिकारी विचारों से लोगों को अवगत कराने एवं युवाओं को प्रेरित करने के लिए कई कार्यक्रम आयोजित किये गये. शहादत दिवस द्वारा देश ने शहीद भगत सिंह, राजगुरु व सुखदेव को श्रद्धांजलि अर्पित की.

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भगत सिंह का आखिरी पत्र


भगत सिंह 23 मार्च 1931 को उन्हें दी जाने वाली फांसी के लिए लंबे समय से बेसब्र थे. उन्होंने देश के लिए एक दिन पहले अर्थात् 22 मार्च 1931 को अपने आखिरी पत्र में भी लिखा. भगत सिंह ने इस पत्र में लिखा, “साथियों स्वाभाविक है जीने की इच्छा मुझमें भी होनी चाहिए. मैं इसे छिपाना नहीं चाहता हूं, लेकिन मैं एक शर्त पर जिंदा रह सकता हूं कि कैद होकर या पाबंद होकर न रहूं. मेरा नाम हिन्दुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका है. क्रांतिकारी दलों के आदर्शों ने मुझे बहुत ऊंचा उठा दिया है, इतना ऊंचा कि जीवित रहने की स्थिति में मैं इससे ऊंचा नहीं हो सकता था. मेरे हंसते-हंसते फांसी पर चढ़ने की सूरत में देश की माताएं अपने बच्चों के भगत सिंह की उम्मीद करेंगी. इससे आजादी के लिए कुर्बानी देने वालों की तादाद इतनी बढ़ जाएगी कि क्रांति को रोकना नामुमकिन हो जाएगा. आजकल मुझे खुद पर बहुत गर्व है. अब तो बड़ी बेताबी से अंतिम परीक्षा का इंतजार है. कामना है कि यह और नजदीक आ जाए.”

 

Gorky Bakshi is a content writer with 9 years of experience in education in digital and print media. He is a post-graduate in Mass Communication
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