सुप्रीम कोर्ट ने 27 मार्च 2017 को केंद्र सरकार तथा जम्मू एवं कश्मीर सरकार से कहा कि वे राज्य में मुस्लिमों को अल्पसंख्यक दर्जा दिए जाने पर बैठकर बात करें एवं निर्णय लें.
मुख्य न्यायाधीश जे एस खेह, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ तथा न्यायमूर्ति एस के कौल की पीठ ने दोनों सरकारों से मामला सुलझाने को कहा. इस मामले पर उन्हें चार सप्ताह के भीतर रिपोर्ट जमा करने को भी कहा गया. पीठ ने कहा, यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्दा है. आप दोनों एकसाथ बैठें और इस पर कोई एक रुख अपनाएं.
न्यायालय ने पिछले महीने इससे संबंधित एक जनहित याचिका के संबंध में अपना जवाब दायर नहीं करने पर केंद्र सरकार पर 30,000 रुपए जुर्माना लगाया था. याचिका में आरोप लगाया है कि जम्मू कश्मीर में बहुसंख्यक मुसलमान अल्पसंख्यकों के लिए निर्धारित लाभ उठा रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट में अंकुर शर्मा द्वारा दाखिल याचिका पर सुनवाई की जा रही है. याचिका में कहा गया कि धर्म और भाषा के आधार पर अधिसूचना जारी कर राज्य के सभी अल्पसंख्यकों तक सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाने का निर्देश दिया जाना चाहिए.
याचिका में कहा गया है कि तकनीकी पेशेवर शिक्षा के क्षेत्र के लिए वर्ष 2007-2008 में केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यकों के लिए 20 हजार छात्रवृत्तियां प्रदान की थीं. इसके तहत जम्मू-कश्मीर में दी जाने वाली कुल 753 छात्रवृत्तियों में से 717 मुस्लिमों को दी गईं जबकि ईसाइयों को दो, सिखों को 22 और बौद्ध धर्म के लोगों को 12 छात्रवृत्तियां दी गईं. साथ ही याचिका में यह भी कहा गया है कि अब तक जम्मू-कश्मीर में अल्पसंख्यक आयोग नहीं है और न ही राज्य अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम बनाया गया है.
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