भारतीय रिजर्व बैंक ने देश में पूंजी प्रवाह को बढ़ावा देने के लिए 04 सितंबर 2013 को विदेशी व्यावसायिक ऋण (ईसीबी, External Commercial Borrowing, ECB) नियमों में ढील दी. आरबीआई ने नये प्रावधानों के अनुसार विदेशी साझेदारों से प्राप्त राशि का कारोबार के सामान्य प्रचालनों में इस्तेमाल को अनुमति प्रदान की.
साथ ही, केंद्रीय बैंक ने निर्धारित तरीकों से ईसीबी प्राप्त करने की भी छूट दी है जिसके तहत कंपनियों को अपने सामान्य प्रचालनों हेतु ऋण न्यूनतम सात वर्षों के लिए प्राप्त करने होंगे. इससे पहले के प्रावधानों में विदेशी साझेदारों से प्राप्त ऋण को सामान्य प्रचालन मे प्रयोग को अनुमति नहीं थी.
हालांकि रिजर्व बैंक ने नियमों में इस ढील का लाभ उठाने के लिए कुछ शर्ते भी लगाई हैं। जिसके अनुसार कुल प्रदत्त शेयरों का न्यूनतम 25 फीसदी उधार देने वाली इकाई पर सुरक्षित होना चाहिए. साथ ही, मूल राशि का वापसी भुगतान सात वर्षों के बाद ही आरंभ हो सकेगा और इस अवधि से पूर्व कोई पूर्व-भुगतान नहीं होंगे.
विदेशी व्यावसायिक ऋण (ईसीबी, External Commercial Borrowing, ECB)
विदेशी व्यावसायिक ऋण एक प्रकार मौद्रिक उपकरण है जिसके प्रयोग से कंपनियां तथा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम विदेशी पूंजी के प्रवाह के सुनिश्चित कर पाते हैं. ईसीबी में वाणिज्यिक बैंकों से ऋण, क्रेता क्रेडिट, विक्रेता क्रेडिट, प्रतिभूत उपकरण (जैसे फ्लोटिंग व निश्चित दरों नोट, आदि) को शामिल किया जाता है. ऋणी इकाई ऋण का अधिकतम 25 फीसदी अपने पूर्व ऋण के भुगतान के लिए कर सकती है जबकि 75 ऋण का इस्तेमाल नयी परियोजनाओं के लिए करना है. भारत में ईसीबी की देख-रेख भारतीय रिजर्व बैंक तथा वित्त मंत्रालय का आर्थिक मामलों का विभाग करता है. इंफ्रास्ट्रक्चचर तथा ग्रीनफील्ड परियोजनाओं और टेलीकॉम क्षेत्र के लिए अधिकतम 50 फीसदी ईसीबी की अनुमति है.
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