प्रशासनिक अधिकारियों के मनमाने तबादले के संबंध में उच्चतम न्यायालय ने 31 अक्टूबर 2013 को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए केंद्र, राज्य तथा संघीय क्षेत्रों को आल इंडिया सर्विस (कंडक्ट) रूल्स 1968 3(3) के अंतर्गत तीन माह के भीतर सिविल सेवकों के निश्चित कार्यकाल तय करने का निर्देश दिया. उच्चतम न्यायालय ने यह फैसला सेवानिवृत्त 83 नौकरशाहों के द्वारा राजनीतिक दखलंदाजी से मुक्त कराने हेतु दायर एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान सुनाया.
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के एस राधाकृष्णन व न्यायमूर्ति पीसी घोष की खंडपीठ ने कहा कि प्रशासनिक अधिकारियों का कार्यकाल निश्चित होने से वे अधिक कार्यकुशलता से काम कर पायेंग.
न्यायालय की खंडपीठ ने नौकरशाही की कार्यप्रणाली में सुधार हेतु यह सुझाव भी दिया कि संसद को नियुक्तियों, तबादलों और अनुशासनात्मक कार्रवाई के नियमन से संबंधित कड़े कानून बनाने चाहिए. इसके लिए उच्चतम न्यायलय ने सरकार को एक सिविल सर्विस बोर्ड के गठन का आदेश दिया.
उच्चतम न्यायालय ने अखिल भारतयी सेवा नियम के नियम संख्या 3 (3) (3) की व्याख्या करते हुए कहा कि सिविल सेवकों को दिये गये सभी निर्देश लिखित होने चाहिए और किसी कारणवश तात्कालिक मौखिक आदेश के पुष्टि हेतु लिखित आदेश जारी होना चाहिए.
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