केंद्र सरकार औषध निर्माण के क्षेत्र में मौजूदा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नीति में बदलाव लाना चाहती है, ताकि विदेशी कम्पनियों द्वारा देसी कम्पनियों के अधिग्रहण की बढ़ती घटनाओं के मद्देनजर घरेलू जैनरिक उद्योग को बचाया जा सके. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इस उद्देश्य के लिए 16 अगस्त 2013 को नई दिल्ली में एक उच्च स्तरीय बैठक की. बैठक में निर्णय किया गया कि वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय इस सिलसिले में जल्द ही सलाह मशविरे की प्रक्रिया शुरू करे.
विदित हो कि बैठक के बाद वाणिज्य और उद्योग मंत्री आनन्द शर्मा ने कहा कि विदेशी निवेश संवर्द्धन बोर्ड के समक्ष प्रस्तावों को मौजूदा नीति के तहत देखा जाना है.
विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड (एफआईपीबी)
भारत में विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड (एफआईपीबी) प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से जुड़े उन प्रस्तावों को मंजूरी देने के लिए एक सिगल विंडो का काम करता है जिन पर सीधे तौर पर एफडीआई की स्वीकृति नहीं होती. इसका उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय कंपनियों,अप्रवासी भारतियों तथा अन्य विदेशी निवेशकों के माध्यम से देश में निवेश की सुविधा प्रदान करके भारत तथा विदेश में निवेश संवर्धन कार्यकलापों की शुरूआत करके भारत में एफडीआई का संवर्धन करना है. एफआईपीबी में विभिन्न मंत्रालय के सचिवों के साथ-साथ आर्थिक मामलों के विभाग एवं वित्त मंत्रालय के सचिव अध्यक्ष के रूप में होते हैं. यह अंतरमंत्रालीय निकाय देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से संबंधित प्रस्तावों पर चर्चा, उच्चतम सीमा, कारकों पर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नीति के तहत करता है. वित्त मंत्रालय एफआईपीबी के अधिकतम 1200 करोड़ रुपए तक के प्रस्तावों पर की गई सिफारिशों को मंजूरी प्रदान करता है. ऐसे प्रस्तावों जिनका मूल्य 1200 करोड़ रुपए से अधिक होता है उनके लिए आर्थिक मामलों पर मंत्रिमंडलीय समिति की स्वीकृति लेनी होती है.
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