जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय ने 18 जुलाई 2015 को अपने एक फैसले में कहा कि, “भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा नहीं बदला जा सकता.” अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि जम्मू-कश्मीर का अपना एक सार्वभौम संविधान है, जिसे न चुनौती दी जा सकती है और न उसमें किसी तरह की छेड़छाड़ हो सकती है.
यह फैसला जस्टिस मुजफ्फर हुसैन अत्तर व अली मुहम्मद मागरे की खंडपीठ ने संसद द्वारा पारित प्रतिभूतिकरण और वित्तीय आस्तियों के पुनर्निर्माण और सुरक्षा हित प्रवर्तन अधिनियम, 2002 (एसएआरएफएईएसआई-सरफेसी/ SARFAESI) को राज्य में लागू किए जाने पर रोक लगाते हुए दिया. सरफेसी अधिनियम के तहत बैंक कर्ज लेने वाले उपभोक्ताओं की संपत्ति को जब्त कर उसे बेच सकते हैं.
सरफेसी को राज्य में लागू करने के मुद्दे पर पक्ष-विपक्ष में दायर 550 याचिकाओं को एक साथ जोड़ते हुए खंडपीठ ने 74 पेज के अपने फैसले में कहा कि यह कानून जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं है और न लागू हो सकता है. इस फैसले में कहा गया है कि संसद को वह कानून बनाने का अधिकार नहीं है, जो अनुच्छेद 13, 17 (ए), 18 (बी), 34, 35 और 36 के अनुसार हो और वह जम्मू-कश्मीर से संबंधित हों.
उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि राज्य अगर चाहे तो वह अपनी विधानसभा में पारित कर अपना एक्ट लागू कर सकता है. राज्य विधानसभा के पास संविधान द्वारा दिया गया संप्रभु अधिकार है, जिससे वह खुद अपने लिए बैंकिंग से जुड़े प्रावधान व नियम तय करने के साथ उसे लागू कर सकता है.
अपने फैसले में न्यायालय ने कहा है कि राज्य का संविधान संप्रभु है और राज्य की विधानसभा के पास अपने कानून लागू करने की संप्रभुता है. अदालत ने यह भी माना कि राज्य की संप्रभुता को किसी भी हाल में न तो खारिज किया जा सकता है और न ही इसे चुनौती ही दी जा सकती है.
विदित हो कि जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय का यह फैसला एक याचिका की सुनवाई के दौरान आया. उक्त याचिका 2002 में राज्य में लाए गए सरफेसी (SARFAESI) ऐक्ट के लागू होने की शर्तों के तहत दायर किया गया था.
सरफेसी ऐक्ट वर्ष 2002 में भारतीय संसद द्वारा राज्य में लागू किया गया था. इस ऐक्ट के अनुसार बैंक और अन्य वित्तीय संस्थाओं को अपने ‘नॉन-परफॉर्मिंग ऐसेट्स’ की वसूली के लिए अदालत के हस्तक्षेप की जरूरत नहीं थी. उच्च न्यायालय ने कहा कि उक्त ऐक्ट को राज्य में लागू नहीं किया जा सकता है.
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