भारतीय संसद के उच्च सदन राज्यसभा में 18 अगस्त 2011 को कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति सौमित्र सेन के विरुद्ध महाभियोग प्रस्ताव पारित हो गया. न्यायाधीश न्यायमूर्ति सौमित्र सेन के विरुद्ध महाभियोग प्रस्ताव के पक्ष में 189 और विपक्ष में 17 सदस्यों ने मत दिए. बहुजन समाज पार्टी ने प्रस्ताव के विरोध में मतदान किया. अब यह महाभियोग प्रस्ताव लोकसभा में लाया जाना है.
राज्यसभा में न्यायाधीश न्यायमूर्ति सौमित्र सेन के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव मार्क्सवादी कम्युनिष्ट पार्टी के नेता सीताराम येचुरी ने 17 अगस्त 2011 को पेश किया. जिसके जवाब में न्यायाधीश न्यायमूर्ति सौमित्र सेन ने सदन में उपस्थित होकर दो घंटे तक अपना बचाव किया.
बहुजन समाज पार्टी ने प्रस्ताव का यह कहकर विरोध किया कि वकील के रूप में सेन के कार्यों के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव नहीं लाया जा सकता है. वर्ष 1993 में कलकत्ता उच्च न्यायालय में अधिवक्ता के तौर पर प्रैक्टिस कर रहे सौमित्र सेन को उच्च न्यायालय ने एक वित्तीय विवाद के निपटारे के लिए रिसीवर नियुक्त किया था. यह विवाद स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया और शिपिंग कॉरपोरेशन के बीच का था.
कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति सौमित्र सेन पर आरोप है कि उन्होंने विवाद से जुड़ी 33.23 लाख रुपये की रकम कोर्ट को सौंपने के बजाय अपने निजी खाते में जमा कर दी थी. वर्ष 2003 में कलकत्ता उच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनने पर भी उन्होंने अदालत को इसकी जानकारी नहीं दी थी. हालांकि वर्ष 2006 में उच्च न्यायालय के निर्देश पर उन्होंने पूरी रकम ब्याज समेत न्यायालय में जमा करा दी थी.
राज्य सभा के इतिहास में यह पहली बार हुआ कि महाभियोग प्रस्ताव पेश किया गया. ज्ञातव्य हो कि वर्ष 1993 में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति वी रामास्वामी के खिलाफ लोकसभा में महाभियोग प्रस्ताव लाया गया था, लेकिन वह पारित नहीं हो सका था, और ना ही राज्य सभा में पेश किया गया था.
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