केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा अगस्त 2015 में जारी किये गए आंकड़ों के अनुसार, पिछले दो दशकों में भारत में शिशु मृत्यु दर में 55 प्रतिशत तक की कमी दर्ज की गई है.
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी किये गए आंकड़ों के अनुसार पिछले दो दशकों में शिशु मृत्यु दर में खासी कमी आई है. लेकिन भारत समेत 24 देश ऐसे हैं जहां यह स्थिति आज भी गंभीर बनी हुई है. इन देशों में शिशु मृत्यु दर में कमी के जो आंकड़े पेश किए गए हैं, वे एक चिंताजनक तस्वीर पेश करते हैं. वर्ष 1990-2012 के दरम्यान के आंकड़े बताते है कि बांग्लादेश में पांच साल तक के बच्चों की शिशु मृत्यु दर में 72 फीसदी की कमी आई है. नेपाल में 71, लाइबेरिया में 70, तंजानियां में 68 और इथोपिया में 67 फीसदी शिशु मौतें घटी हैं. पिछले दो दशकों के दौरान भारत शिशु मृत्यु दर में हालांकि 55 फीसदी तक की कमी लाने में सफल रहा है लेकिन इस मामलों में वह कई छोटे-छोटे देशों से भी पीछे है.
इन आंकड़ों में कहा गया है कि दुनिया में अभी भी करीब साठ लाख बच्चे पांच साल की आयु पूरी नहीं कर पाते हैं. इनमें से करीब तीस लाख बच्चे पांच देशों भारत, नाइजीरिया, कांगो, पाकिस्तान तथा इथोपिया में हैं. वैसे शिशु मृत्यु दर में कमी लाने के मामले में पाकिस्तान की स्थिति भारत से भी खराब है. वह उपरोक्त अवधि में शिशु मौतों में 38 फीसदी तक कही कमी ला पाया है.
उपरोक्त आंकड़ों से संबंधित मुख्य तथ्य:
• वर्ष 1990 में पांच साल की आयु पार नहीं कर पाने वाले बच्चों की संख्या 1.26 करोड़ थी.
• माताओं की मृत्यु दर में 45 फीसदी की कमी आई है. वर्ष 1990 में 5.23 लाख माताओं की प्रसव के दौरान मौत होती थी जो अब घटकर 2.89 लाख रह गई है.
• नए सतत विकास लक्ष्य के तहत वर्ष 2035 तक शिशु मृत्यु दर को एक हजार जन्मों पर 20 से कम लाने तथा मातृ मृत्यु दर को एक लाख प्रसवों पर 50 से नीचे लाने का लक्ष्य रखा गया है.
• भारत में अभी भी एक लाख प्रसवों के दौरान औसतन 160 महिलाओं की मौत हो जाती है जबकि एक हजार बच्चों पर 40 बच्चों की मृत्यु हो जाती है.
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