भारत-विद् और संस्कृत विद्वान सुकुमारी भट्टाचारजी का 24 मई 2014 को निधन हो गया. वह 92 वर्ष की थी. उन्हें अंग्रेजी और संस्कृत भाषा दोनों की बराबर समझ थी.
सुकुमारी भट्टाचारजी का जन्म 12 जुलाई 1921 को हुआ था. उन्होंने अपने कैरियर शुरूआत कोलकाता में लेडी ब्रेबॉर्न कॉलेज में अंग्रेजी के एक प्राध्यापक के रूप में की थी. वह जादवपुर विश्वविद्यालय के तुलनात्मक साहित्य विभाग में भी रही और बाद में संस्कृत विभाग में स्थानांतरित हो गयी.
संस्कृत पर उनकी गहरी पकड़ ने वेद और गीता के गहन अध्ययन करने तथा प्राचीन भारत के सामाजिक पैटर्न और संस्कृति और धर्म के विकास की परतें खोलने में मदद की.
उन्होंने कुछ 34 पुस्तकें गीता जैसी लिखी है जिनमें ‘इट्स व्हाई एंड हाउ’, ‘ह्यूमन एंड सोसायटी इन एनसिएंट इंडिया’, ‘फेटेलिज्म इन एनसिएंट इंडिया’.उन्होंने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘दैवीज’ में विश्लेषण किया कि कैसे देवी लक्ष्मी पूर्व आर्य कृषि प्रधान समाज में तथा आर्य समाज में लोकप्रिय हुई.
उनकी अन्य पुस्तकों में बीड समसे नेस्तिको, बीड खुदा हे खदाया और बाल्मीकीर राम शामिल हैं.
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