केरल उच्च न्यायालय ने मराड में वर्ष 2003 में हुई सांप्रदायिक हिंसा के मामले में 24 लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई, तथा प्रत्येक पर 25-25 हजार रूपए का जुर्माना भी लगाया. निचली अदालत ने इन लोगों को बरी कर दिया था. यह निर्णय न्यायमूर्ति न्यायाधीश एम शशिधरन नाम्बियार और न्यायमूर्ति न्यायाधीश पी भवदासन की खंडपीठ ने 16 अगस्त 2012 को दिया.
इस सांप्रदायिक हिंसा में नौ लोगों की जान गई थी. अदालत ने मराड की एक विशेष अदालत द्वारा 139 आरोपियों में से 76 को बरी करने के फैसले को चुनौती देने वाली केरल सरकार की अपील को आंशिक तौर पर अनुमति प्रदान कर दी. मराड अदालत ने जनवरी 2009 में 62 आरोपियों को आजीवन कारावास और अन्य को पांच साल की सजा सुनाई थी.
पीठ ने 13 लोगों को मृत्युदंड देने के सरकार के अनुरोध को नहीं माना. विशेष अदालत ने उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. पीठ ने उन 74 में 24 लोगों को आजीवन कारावास सुनाया जिन्हें पहले बरी कर दिया गया था. मामले में दोषी ठहराये गए 62 लोगों ने उनकी सजा को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी जिसे पीठ ने नामंजूर कर दिया.
केरल राज्य के इतिहास में हुए सबसे भीषण सांप्रदायिक हिंसा में कोझिकोड जिले के मराड तट पर हमलावरों ने आठ लोगों की तलवार से प्रहार करके जान ले ली थी, जबकि एक हमलावर की भी हिंसा में दुर्घटनावश मौत हो गई थी.
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