यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज का 17वां सम्मलेन दक्षिण अफ्रीका के डरबन में 28 नवंबर से शुरू होकर 9 दिसंबर 2011 को संपन्न हुआ. जलवायु परिवर्तन के खतरों से निपटने और कार्बन उत्सर्जन पर चर्चा के लिए विभिन्न देशों के प्रतिनिधियों ने सम्मलेन में हिस्सा लिया. सम्मलेन का थीम था - वर्किंग टुगेदर सेविंग टुमॉरो टुडे (Working Together Saving Tomorrow Today).
यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (UNFCCC: United Nations Framework Convention on Climate Change, यूएनएफसीसीसी) के 17वें सम्मलेन में पृथ्वी से कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए और विश्व के औसत तापमान में होने वाली वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित किए जाने पर सहमति बनी. हालांकि इस सहमति को कानूनी रूप से सभी देशों पर लागू किए जाने का विकासशील देशों ने विरोध किया.
यूरोपीय यूनियन ने वातावरण पर दुष्प्रभाव डालने वाली गैसों पर तय सीमा के भीतर रोक लगाने और इसके तहत सभी देशों के मध्य नई संधि की मांग की. साथ ही इसके कानूनी प्रारूप को भी बनाने की सिफारिश की. भारत ने कानूनी तौर पर ऐसी किसी भी संधि का विरोध किया. भारत ने अपने तर्क में यह बताया कि विकसित देशों द्वारा भी कार्बन उत्सर्जन बहुत मात्रा में किया जाता है. साथ ही इस संधि के कानूनी बाध्यता के बाद विकासशील देशों को विकसित राष्ट्र बनने की संभावना समाप्त हो जाएगी. भारत का प्रतिनिधित्व केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयंती नटराजन ने किया.
सभी देशों द्वारा वर्ष 2015 के लिए एक संतुलित समझौते की रूपरेखा मंजूर कर ली गई. इस समझौते के तहत भारी मात्रा में कार्बन उत्सर्जन करने वाले सभी देश उत्सर्जन में कटौती के लिए प्रथम बार कानूनी तौर पर बाध्य होंगे. इसके तहत प्रथम बार भारत और चीन भी उत्सर्जन कटौती के दायरे में आएंगे. साथ ही नए करार के तहत सभी देश एक ही कानूनी व्यवस्था में भी आएंगे.
ज्ञातव्य हो कि वर्ष 1992 में यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (UNFCCC: United Nations Framework Convention on Climate Change, यूएनएफसीसीसी) बना था.
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