यूरोपीय संघ (ईयू) के कोर्ट ऑफ जस्टिस (The Court of Justice of the European Union) ने वर्ष 2006 में ईयू द्वारा लिट्टे (Liberation Tigers of Tamil Eelam, LTTE) पर लगाए गए उन प्रतिबंधों को खारिज कर दिया है जिसका उद्देश्य आतंकवाद का मुकाबला करना था. अदालत ने यह निर्णय 16 अक्टूबर 2014 को दिया.
अदालत ने कहा कि प्रतिबंधित लिट्टे की संपत्तियों के लेन-देन और खरीदने-बेचने पर फिलहाल रोक रहेगी. ईयू के कोर्ट ऑफ जस्टिस ने यूरोपीय संघ की परिषद को आदेश दिया कि वह श्रीलंकाई संगठन पर लगाए गए प्रतिबंध को खत्म करे.
अदालत ने अपने आदेश कहा कि प्रेस और इंटरनेट के माध्यम से सामने आए आरोपों के आधार पर वर्ष 2006 में लिट्टे को आतंकवादी संगठन घोषित किया गया था. 'भारतीय अधिकारियों को भरोसेमंद स्रोत नहीं माना जा सकता क्योंकि उन्होंने लिट्टे और श्रीलंका सरकार के बीच के संघर्ष में 'पूर्वाग्रह से ग्रस्त स्थिति' अपनाई थी.' बयान में कहा गया कि लिट्टे का यह दावा गलत है कि अंतरराष्ट्रीय कानून में सशस्त्र संघर्ष और आतंकवाद के बारे में धारणा परस्पर विरोधी है.
अमेरिका और कनाडा की ओर से लगाए गए प्रतिबंधों के बाद ईयू ने वर्ष 2006 में लिट्टे को आतंकवादी संगठन घोषित किया था. इस प्रतिबंध की वजह से लिट्टे से जुड़ी किसी भी गतिविधि को आपराधिक घोषित किया जा सकता था.
लिबरेशन टाइगर्स आफ तमिल ईलम (एलटीटीई) से संबंधित मुख्य तथ्य
लिट्टे विश्व का एक प्रमुख आतंकवादी संगठन हैं. इसकी स्थापना वर्ष में 1975 वेलुपिल्लई प्रभाकरण ने श्रीलंका में ‘तमिल अलगाववादी’ संगठन के रूप में की थी. यह आतंकवादी संगठन श्रीलंका के उत्तरी और उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में दो दशकों से अधिक समय से सक्रिय है. लिट्टे प्रमुख वेलुपिल्लई प्रभाकरण को 18 मई 2009 को श्रीलंका की सेना ने मार दिया.
विदित हो कि लिट्टे पर पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी (1991) एवं पूर्व श्रीलंका के राष्ट्रपति प्रेमदासा रनसिंघे (1993) को मारने का आरोप है. विश्व के कई अन्य देशों में भी यह एक प्रतिबंधित संगठन है.
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