रुपया 11 महीने के सर्वोच्च पर पहुँचकर एशिया-प्रशांत क्षेत्र की सर्वोत्तम निष्पादक मुद्रा बना

May 28, 2014, 15:30 IST

भारतीय रुपया (आईएनआर) 11 महीने में सर्वाधिक सुधरकर 2014 में अमेरिकी डॉलर के विरुद्ध एशिया-प्रशांत क्षेत्र की सर्वश्रेष्ठ निष्पादक मुद्रा बन गया.

भारतीय रुपया (आईएनआर) 11 महीने में सर्वाधिक सुधरकर 2014 में अमेरिकी डॉलर के विरुद्ध एशिया-प्रशांत क्षेत्र की सर्वश्रेष्ठ निष्पादक मुद्रा बन गया. दिनांक 23 मई 2014 को रुपया डॉलर के विरुद्ध 11 महीने के शीर्ष पर पहुँचकर 58.52पर बंद हुआ.

पिछले एक महीने मेंभारतीय रुपये का मूल्य अमेरिकी डॉलर के विरुद्ध5.3 प्रतिशत सुधरा है.

अमेरिकी डॉलर के विरुद्ध भारतीय रुपये के मूल्य में 5.3 प्रतिशत की वृद्धि एशिया-प्रशांत की अन्य समकक्ष मुद्राओं, जैसे कि इंडोनेशियाई रुपिया और न्यूजीलैंड डॉलर से आगे रही.

2014 के शुरू में अमेरिकी डॉलर के विरुद्ध भारतीय रुपया 61.80 पर था और तब से इसमें,अंशत: विदेशी निधियों के आगमन के कारण,छह महीने से भी कम समय में 327 पैसे की वृद्धि हुई है. यह वृद्धि अगस्त 2013 की तुलना में एकबड़ाउलटफेर है, जबरुपया अपने सार्वकालिक निम्नतम स्तर68.80 पर पहुंच गया था.

रुपये की मूल्यवृद्धि का मुख्य कारण पूँजी-प्रवाहों का बढ़ना और नई सरकार का गठन है, जिसने अर्थव्यवस्था में प्राण फूँकने के लिए बड़े सुधारों की उम्मीद जगा दी है.

एशिया-प्रशांत क्षेत्र में भारतीय रुपये के बाद इंडोनेशियाई रुपिया, न्यूजीलैंड डॉलर और ऑस्ट्रेलियाई डॉलर रहे, जिनमें क्रमश:4.60, 3.75 और3.55 प्रतिशतकी वृद्धि हुई.

येन(जापान), वॉन(दक्षिण कोरिया) और रिंगिट(मलयेशिया) के मूल्य में 2014 में अब तक 2 से3 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.

फिलीपींस का पेसो अमेरिकी डॉलर के विरुद्ध1.6 प्रतिशतबढ़ा है, जबकिथाइलैंड के बहत और सिंगापुरी डॉलर में0.5 प्रतिशत की एक छोटी वृद्धि हुई है.

हांगकांग डॉलर प्राय: अपरिवर्तितमुद्राओं में रहा है, जबकिचीन के युआन ने अपना मूल्य खोया है.

मुद्रा की मूल्य वृद्धि

मुद्रा की मूल्य वृद्धि का अर्थ है एक मुद्रा के मूल्य में अन्य मुद्राओं की तुलना में वृद्धि होना. मुद्राओं के मूल्य में एक-दूसरे की तुलना में वृद्धि कई कारणों से होती है, जिनमें पूँजी-आगमन और देश की चालू खाते की स्थिति शामिल हैं.

मूल्यवृद्धि के प्रभाव

• देश का अंतरराष्ट्रीय व्यापार (निर्यात और आयात) : कमजोर मुद्रा सेनिर्यातों में वृद्धिहोगी, जबकि आयात महँगे हो जाएँगे, जिससेआगे चलकर देश का व्यापार-घाटा कम हो जाएगा (या अधिशेष अर्थात सरप्लस बढ़ जाएगा).

• विदेशी पूँजी उन देशों में प्रवाहित होगी, जिनमें मजबूत सरकार, गतिशीलअर्थव्यवस्था और स्थिर मुद्रा होगी. इसका अर्थ है कि स्थिर मुद्रा विदेशी निवेशकों से निवेश-पूँजी आकर्षित करेगी.

• देश में मुद्रास्फीति बढ़ सकती है, क्योंकि अवमूल्यित (Devalued) मुद्रा भारी संख्या में आयातकों वाले देशों में आयातित मुद्रास्फीति में परिणत हो सकती है.

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