भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार से लोकसभा में नेता विपक्ष की स्थिति पर फैसला लेने के संबंध में 22 अगस्त 2014 को सवाल पूछा. इसने सरकार को इस मुद्दे पर 9 सितंबर 2014 तक अपनी प्रतिक्रिया देने का निर्देश दिया.
यह फैसला एक गैर– सरकारी संगठन कॉमन काज द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरएम लोढ़ा की अध्यक्षता में न्यायाधीश न्यायमूर्ति कुरियन जोसफ और न्यायाधीश न्यायमूर्ति रोहिंटन नरिमन वाली सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने दिया.
याचिकाकर्ता ने लोकपाल अधिनियम के प्रावधानों को चुनौती दी थी. अधिनियम के कार्यान्वयन के लिए नेता विपक्ष का होना जरूरी है जिसे लोकपाल चयन समिति का सदस्य होना चाहिए. इस पैनल के सदस्यों में प्रधानमंत्री और लोकसभा के अध्यक्ष भी हैं.
पीठ ने कहा को अभी तक लोकपाल के पद पर किसी की नियुक्ति नहीं होने के बावजूद लोकपाल कानून को ठंडे बस्ते में नहीं डाला जाना चाहिए. लोकपाल के पद पर किसी व्यक्ति की नियुक्ति सिर्फ तभी हो सकती है जब नेता विपक्ष चयन समिति के पांच सदस्यों में से एक हो.
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यह लोकसभा में नेता विपक्ष से जुड़ा मामला है जिसका पद अभी खाली पड़ा है. साथ ही न्यायालय ने नेता विपक्ष के महत्व पर भी प्रकाश डाला जो कि सदन में सरकार से अलग आवाज को बुलंद करता है.
हालांकि इससे पहले अगस्त 2014 में सर्वोच्च न्यायालय ने कांग्रेस को नेता विपक्ष का दर्जा दिए जाने संबंधी एक जनहित याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि अध्यक्ष द्वारा लिया गया निर्णय न्यायिक समीक्षा के अधीन नहीं है.
विश्लेषण और पृष्ठभूमि
16वीं लोकसभा चुनावों के नतीजे 16 मई 2014 को घोषित किए गए थे. इसमें किसी भी पार्टी को न्यूनतम 10 फीसदी सीट नही प्राप्त हो सकी. जिसके आधार पर ही वे अपने नेता को नेता विपक्ष के लिए नामांकित कर सकते थे. 16वीं लोकसभा चुनाव में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस पार्टी चुनाव में दस फीसदी सीट जीतने में नाकाम रही और 543 सदस्यों वाले सदन में सिर्फ 44 सीटें ही जीत सकी, जबकि नेता विपक्ष के लिए नामांकन देने हेतु न्यूनतम 55 सीटों की जरूरत होती है.
दूसरी तरफ लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने पहले ही नेता विपक्ष बनाने की कांग्रेस की मांग को खारिज कर दिया था. उन्होंने उन नियमों का हवाला दिया जो उन्हें किसी भी पार्टी को विपक्ष के लिए नामांकित करने से रोक रहे थे क्योंकि निचले सदन में किसी भी पार्टी की पात्रता के तौर पर उसके पास कम–से–कम 55 सीटें होनी चाहिए.
नेता विपक्ष के लिए सदन में न्यूनतम दस फीसदी सीट की अनिवार्य़ता 1950 में मावलंकर नियम के तहत बनाया गया था. जीवी मावलंकर पहली लोकसभा के अध्यक्ष थे.
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