16 मार्च 2015 को सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी अधिकारियों को आगाह करते हुए कहा कि वे नागरिकों को अपने आधार कार्डों के इस्तेमाल के लिए मजबूर न करें.
जस्टिस जे चेलामेश्वर की अध्यक्षता और जस्टिस कुरियन जोसफ और सी नाग्प्पन की तीन जजों की पीठ ने चेतावनी दी कि ऐसी कार्रवाई सरकारी अधिकारियों के लिए गंभीर परिणाम वाली हो सकती है.
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को सभी राज्यों की सरकारों को पत्र लिखकर सुप्रीम कोर्ट के सितंबर 2013 के आदेश के पालन को सुनिश्चित करने को कहा है जिसमें आधार को लोगों के लिए अनिवार्य नहीं करना, कहा गया था.
इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक भी व्यक्ति ऐसा न हो जिसे आधार कार्ड न मिले बावजूद इसके कि कुछ अधिकारी ने इसे अनिवार्य बनाने के लिए परिपत्र जारी किया था.
आगे यह कहा गया है कि इस बात की जांच की जरूरत है आधार कार्ड के लिए स्वेच्छा से आवेदन करने वाला व्यक्ति इसके योग्य है या नहीं. साथ ही इस बात को भी सुनिश्चित करने की जरूरत है कि इसे किसी अवैध आप्रवासी को नहीं जारी किया जाए.
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला याचिकाओं के एक सेट पर सुनवाई करने के दौरान दिया गया. इसमें एक याचिका कर्नाटक उच्च न्यायलय के भूतपूर्व जज जस्टिस के एस पुट्टास्वामी द्वारा दायर याचिका भी थी जिसमें भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) द्वारा जारी किए जाने वाले कार्ड की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई थी.
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