केंद्र सरकार द्वारा पहली बार सेना में देसी नस्ल के कुत्तों को शामिल करने का प्रयास किया जा रहा है. सेना में अभी तक जर्मन शेफर्ड, लैब्राडोर्स और ग्रेट स्विस माउंटेन डॉग्स जैसे विदेशी नस्ल के डॉग्स का प्रयोग किया जाता रहा है.
मेरठ में सेना की रीमाउंट ऐंड वेटरनेरी कोर (आरवीसी) सेंटर ने देसी नस्ल के 6 मुधोल शिकारी कुत्तों के प्रशिक्षण को पूरा कर लिया है और इन्हें इस साल के अंत में सेना में शामिल कर लिया जाएगा. इन शिकारी देशी कुत्तों की पहली तैनाती जम्मू और कश्मीर में की जा सकती है.
प्रमुख तथ्य-
- सेना में देशी कुत्तों को शामिल करने हेतु प्रशिक्षण एक बिलकुल नई पहल है क्योंकि सेना के पास अब तक शिकारी कुत्तों को प्रशिक्षित करने का कोई अनुभव नहीं था, न ही इस पर कोई रिसर्च मौजूद था.
- शुरुआत में इन कुत्तों को बिलकुल अकेले रखा गया ताकि यह जांच की जा सके कि इन्हें कोई बीमारी तो नहीं हैं.
- इसके बाद उन्हें आदेश पालन का बेसिक प्रशिक्षण प्रदान किया गया और उसके बाद उन्हें विशेष प्रशिक्षण दिया गया.
- सबसे अहम पहलू ट्रेनर और डॉग के बीच आपसी समझ और रिश्ता विकसित करना रहा. उनके व्यवहार के साथ-साथ उनकी क्षमताओं को भी समझने की कोशिश की गई.
- इनको कर्नाटक से पिछले साल रीमाउंट ऐंड वेटरनेरी कोर (आरवीसी) सेंटर भेजा गया था और तभी से इनको प्रशिक्षित किया गया.
मुधोल हाउंड-
- मुधोल हाउंड की पहचान मजबूत वंशावलीवाले भारतीय नस्ल की है.
- अपनी गति और फुर्ती के साथ-साथ अपने आकार की वजह से ये गार्ड गॉड के तौर पर अच्छे साबित हो सकते हैं.
- हालांकि इसका यह मतलब नहीं है कि उन्हें दूसरे कामों के लिए विशेषतौर पर प्रशिक्षित नहीं किया जा सकता.
- ट्रेनिंग के लिए डॉग्स के चयन में मिज़ाज और क्षमता पर विचार किया जाता है. इसके पीछे बहुत सारी वैज्ञानिक सोच भी है.
कुत्तों की ब्रीडिंग और प्रशिक्षण के बारे में जागरुकता के उद्देश्य से कार्यरत मुंबई स्थित इंडियन नैशनल केनल क्लब द्वारा टाइम्स ऑफ इंडिया को दी गई जानकारी के अनुसार यह पहली बार नहीं है जब किसी संगठन ने मुधोल हाउंड को प्रशिक्षित करने की कोशिश की है.
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