केंद्र सरकार देश में न्यूट्रिनो ऑब्जर्वेटरी स्थापित करने की योजना बना रही है. केंद्रीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष, डॉ. जितेंद्र सिंह ने 21 सितंबर, 2020 को संसद के निचले सदन, लोकसभा में एक लिखित जवाब में यह जानकारी दी है.
भारत स्थित न्यूट्रिनो ऑब्जर्वेटरी (INO) एक रॉक-कवर के साथ एक विश्व स्तरीय भूमिगत प्रयोगशाला होगी जो पृथ्वी के वातावरण में उपस्थित न्यूट्रिनो का अध्ययन करेगी.
उद्देश्य
इस अवलोकन से शोधकर्ताओं को न्यूट्रिनो कणों के गुणों के बारे में अधिक समझने में मदद मिलेगी, जिसका मुख्य स्रोत सूर्य और पृथ्वी का वायुमंडल है.
इस INO परियोजना में शामिल होंगे
• तमिलनाडु के थेनी जिले में बोडी वेस्ट हिल्स में एक भूमिगत प्रयोगशाला और संबद्ध सतह सुविधाओं का निर्माण किया जायेगा. इस भूमिगत प्रयोगशाला में 132 मीटर X 26 मीटर X 20 मीटर के आकार की एक बड़ी गुफा (कैवर्न) और कई छोटे कैवर्न्स शामिल होंगे. इन गुफाओं तक पहुंचने के लिए 2100 मीटर लंबी और 7.5 मीटर चौड़ी सुरंग होगी.
• न्यूट्रिनो का अध्ययन करने के लिए एक चुम्बकीय लौह कैलोरिमीटर (ICAL) डिटेक्टर का निर्माण किया जायेगा. कैलोरीमीटर, किसी भी देश द्वारा बनाया गया सबसे भारी, 50000 टन मैग्नेटाइज्ड लोहे के प्लेटों से मिलकर बनेगा, जिनमें बीच में अंतराल के साथ स्टैग की व्यवस्था की जायेगी, जहां प्रतिरोधक प्लेट चेम्बर्स (RPC) को सक्रिय डिटेक्टर के रूप में डाला जाएगा.
• मदुरै में इंटर-इंस्टीट्यूशनल सेंटर फॉर हाई एनर्जी फिजिक्स (IICHEP) की स्थापना की जायेगी. यह संस्थान भूमिगत प्रयोगशाला, डिटेक्टर अनुसंधान के रखरखाव, संचालन और विकास के साथ-साथ मानव संसाधन विकास के लिए सारी जरुरी सहायता प्रदान करेगा.
यह INO प्रयोगशाला क्यों महत्वपूर्ण है?
• आज भौतिकी में सबसे महत्वपूर्ण खुली समस्याओं में से एक न्यूट्रिनो द्रव्यमान और मिश्रण मापदंडों का निर्धारण करना है. यद्यपि न्यूट्रिनो प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं, लेकिन इनकी कमजोर अंतःक्रियात्मक प्रकृति इन कणों का अध्ययन प्रयोगशाला में अत्यंत जटिल बना देती है.
• ICAL डिटेक्टर को इन प्रमुख समस्याओं में से कुछ का समाधान अनूठे तरीके से करने के लिए डिज़ाइन किया गया है. यह वायुमंडलीय न्यूट्रिनो और एंटी न्यूट्रिनो की विस्तृत श्रृंखला की ऊर्जा और पथ की लंबाई का पता लगाएगा.
• इस परियोजना का मुख्य केंद्र मल्टी- GeV रेंज में वायुमंडलीय न्यूट्रिनो की ऊर्जा और आंचलिक कोण निर्भरता को देखते हुए पृथ्वी के पदार्थ प्रभाव का पता लगाना है.
• आने वाले कुछ वर्षों में, भौतिकी, जीव विज्ञान, भूविज्ञान और जल विज्ञान में अन्य अध्ययनों के लिए यह भूमिगत प्रयोगशाला एक पूर्ण भूमिगत विज्ञान प्रयोगशाला के रूप में विकसित होने की उम्मीद है.
न्यूट्रिनो : आपके लिए जरुरी सारी जानकारी!
न्यूट्रिनोज़ क्या हैं?
• न्यूट्रिनो इलेक्ट्रान की तरह छोटे प्राथमिक कण हैं लेकिन एटम का हिस्सा नहीं हैं. कोई प्राथमिक कण वह है जिसे और छोटे टुकड़ों में नहीं तोड़ा जा सकता है.
• कुल मिलाकर, वे तीन किस्म के होते हैं, एक इलेक्ट्रॉन के समान और अन्य दो, जोकि इलेक्ट्रॉन से भी से भारी - म्यूऑन (इलेक्ट्रॉन से 200 गुना भारी) और टाओ (इलेक्ट्रॉन से 3500 गुना भारी) होते हैं.
• इन तीनों किस्म के कणों में से प्रत्येक में एक न्यूट्रिनो साथी होता है जिसे इलेक्ट्रॉन न्यूट्रिनो, म्यूऑन न्यूट्रिनो और टाओ न्यूट्रिनो कहा जाता है.
• जबकि इलेक्ट्रॉन, म्यूऑन और टाओ सभी नकारात्मक रूप से आवेशित कण होते हैं, सभी न्यूट्रिनों वर्णहीन या तटस्थ होते हैं और लगभग व्यापक होते हैं.
• इन छह कणों के समूह को ‘लेप्टन’ के रूप में जाना जाता है. हाल के प्रयोगों के अनुसार, इन चार्ज-न्यूट्रल मौलिक कणों में एक परिमित, लेकिन छोटा द्रव्यमान होता है जो अज्ञात होता है.
ये न्यूट्रिनोज़ कहां पाये जाते हैं?
ये न्यूट्रिनोज़ प्रकृति में बहुतायत से पाए जाते हैं. सूर्य, तारे और वायुमंडल प्रत्येक सेकंड में लाखों न्यूट्रिनोज़ का उत्पादन करते हैं और इनमें से अधिकांश न्यूट्रिनोज़ हमारे शरीर के आर-पार, हमारी अनुभूति के बिना गुजरते हैं. वे पृथ्वी से भी गुजर सकते हैं और दूसरी तरफ निकल सकते हैं क्योंकि वे अपने रास्ते में आने वाली किसी भी चीज़ के साथ बहुत कम संपर्क कायम करते हैं.
पृष्ठभूमि
भारत स्थित न्यूट्रिनो ऑब्जर्वेटरी (INO) एक बहु-संस्थागत सहभगिता है और यह भारत में शुरू की गई सबसे बड़ी प्रायोगिक कण भौतिकी परियोजनाओं में से एक है. इस कण भौतिकी अनुसंधान परियोजना को न्यूट्रिनो मिश्रण मापदंडों का सटीक माप प्रदान करने के लिए उम्मीद जताई गई है. भारत सरकार के तहत इस परियोजना को संयुक्त रूप से परमाणु ऊर्जा विभाग (DAE) और विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) द्वारा वित्त पोषित किया जाएगा.
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