चीन द्वारा डोकलाम क्षेत्र में सड़क निर्माण से शुरु हुए विवाद से दोनों देशों के संबंधों पर तनाव के बादल मंडराने लगे. यह स्थान चीन एवं भूटान दोनों देशों के बीच एक विवादास्पद स्थल रहा है. दोनों ही देश इस स्थान पर अपना अधिकार जताते रहे हैं लेकिन ऐसे में भारत की स्थिति भी मजबूत दिखाई दी.
भारत द्वारा जहां कूटनीतिक कदम उठाकर चीन को जवाब दिया गया वहीं रणनीतिक तौर पर भी चीन पर दबाव बनाया गया. चीन पिछले कुछ वर्षों से भारत और चीन के मध्य विवादित 4,000 किलोमीटर के क्षेत्र में सड़क और रेल मार्ग स्थापित करने में प्रयासरत है. इस दिशा में कदम बढ़ाते हुए भारत ने भी हाल ही में सीमाओं पर सड़क बनाना आरंभ किया.
केंद्र सरकार ने 2006-07 में भारत-चीन सीमा पर 73 रणनीतिक सड़कों के निर्माण को मंजूरी दी थी जिन्हें 2012 तक पूरा कर लिया जाना था लेकिन आगे चलकर इसकी समय सीमा बढ़ा दी गयी. नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) द्वारा संसद में मार्च 2016 को प्रस्तुत की गयी रिपोर्ट में कहा गया कि अधिकतर रणनीतिक सड़कें समय पर पूरी नहीं हो सकी हैं. इन सड़कों का भारत की सैन्य आवश्यकताओं की दृष्टि से विशेष महत्ता है.
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मुख्य बिंदु
• भारत-चीन सीमा पर कुल 73 स्थानों पर सड़कें बनाने का निर्णय लिया गया जिसमें से 61 सड़कें (3,409 किलोमीटर) सीमा सड़क संगठन द्वारा बनाई जा रही हैं.
• सीमा सड़क संगठन भारत की सीमाओं पर मौजूद सड़कों का निर्माण करने वाली संस्था है.
• महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट में पाया गया कि वर्ष 2012 तक 61 सड़कें पूरी होने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था.
• इस परियोजना की पूर्ति हेतु 4,644 करोड़ रुपये की लागत से 22 सड़कें बनकर तैयार हो चुकी हैं.
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• केंद्र सरकार अरुणाचल प्रदेश, असम, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में चार रेल मार्गों का निर्माण करना चाहती है.
• इनका निर्माण रक्षा और रेल मंत्रालय संयुक्त रूप से करेंगे.
पूर्व रक्षा मंत्री ने अगस्त 2016 में हुए संसद सत्र में कहा था कि 39 अन्य मार्गों का निर्माण कार्य पूरा करने की योजना को संशोधित किया गया है. इसके अनुसार पांच मार्गों को 2016 में, आठ मार्गों को 2017 में, 12 मार्गों को 2018 में, 08 मार्गों को 2019 में और बाकी 06 मार्गों को 2020 में पूरा किया जाएगा.
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