भारत द्वारा समुद्री सुरक्षा के लिए 70 हजार करोड़ रुपये की लागत से छह देशों के साथ मिलकर ‘प्रोजेक्ट 75’ आरंभ किया गया.
समुद्र के भीतर सुरक्षा के लिए यह भारत द्वारा किया गया सबसे बड़ा समुद्री समुझौता होगा. इस समझौते के तहत शिपयार्ड में 70 हजार करोड़ रुपये की लागत से फ्रांस, जर्मनी, रूस, स्वीडन, स्पेन और जापान के सहयोग से छह एडवांस्ड स्टेल्थ पनडुब्बियां बनाई जायेंगी. भारत के इस रक्षा कार्यक्रम को ‘प्रोजेक्ट 75’ नाम दिया गया है.
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार नवंबर 2007 में इस समझौते की आवश्यकता को समझा गया था. उस समय मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे लेकिन किन्हीं कारणों से यह समझौता अंतिम रूप में नहीं पहुंच सका.
प्रोजेक्ट-75 मुख्य बिंदु
• इस परियोजना के तहत भारतीय नौसेना पहले छह डीजल-बिजली इंजन से चलने वाली पनडुब्बियां बनवाना चाहता है.
• इनमें धरती पर मार करने वाली क्रूज मिसाइल, एयर-इंडिपेंडेंट प्रोपल्सन, पानी के अंदर ज्यादा देर तक रहने की क्षमता, भारतीय आयुध और सेंसर जैसी सुविधाओं वाली पनडुब्बियां होनी चाहिए.
• प्रोजेक्ट-75 के तहत 18 डीजल-बिजली पनडुब्बियां, छह परमाणु हमले में सक्षम हमलावर पनडुब्बियां (एसएसएन) और चार परमाणु ऊर्जा से संचालित पनडुब्बियां भी होंगी जिनमें लम्बी दूरी की परमाणु मिसाइल (एसएसबीएन) लगी हों.
• इस प्रक्रिया में दो वर्ष का समय लग सकता है.
• इस समझौते में भारत के साथ फ्रांस, जर्मनी, रूस, स्वीडन, स्पेन और जापान शामिल हैं.
भारत सरकार द्वारा विश्व की अत्याधुनिक पनडुब्बी बनाने वाली छह कंपनियों नैवेल ग्रुप-डीसीएनएस (फ्रांस), थाइसेनक्रुप मैरीन सिस्टम (जर्मनी), रोजोबोरोनएक्सपोर्ट रुबीन डिजाइन ब्यूरो (रूस), नवानतिया (स्पेन), साब (स्वीडन) और मित्सुबिशी-कावासाकी हेवी इंडस्ट्रीज कम्बाइन (जापान) को 'रिक्वेस्ट ऑफ इन्फॉर्मेशन' भेजा है.
Comments
All Comments (0)
Join the conversation