ईरान हाल ही में भारत को बहुत बड़ा झटका दे दिया है. दरअसल, ईरान के पर्सियन गल्फ में मौजूद फरजाद-बी गैस फील्ड (Farzad-B Gas Field) भारत के हाथ से निकल गया है. अमेरिकी प्रतिबंधों के बीच चीन के साथ दोस्ती बढ़ा रहे ईरान ने भारत को अरबों डॉलर का झटका दिया है.
ईरान ने इस विशाल गैस फील्ड को डेवलप करने का ठेका देश की एक स्थानीय कंपनी पेट्रोपार्स ग्रुप को दे दिया है. बता दें कि इस गैस फील्ड की खोज भारत की ओएनजीसी विदेश लिमिटेड ने की थी. ईरान ने अब इस गैस फील्ड को खुद ही विकसित करने का फैसला किया है.
2 अरब डॉलर के प्रस्ताव खारिज
ईरान ने इससे पहले चाबहार रेलवे लिंक परियोजना के लिए भारत के 2 अरब डॉलर के प्रस्ताव को खारिज कर दिया था. ईरान की सरकारी न्यूज सर्विस ‘शना’ की रिपोर्ट के अनुसार, नेशनल इरानियन ऑयल कंपनी (NIOC) ने भारत को झटका देते हुए इस गैस फील्ड को डेवलप करने का ठेका पेट्रोपार्स ग्रुप को दे दिया है.
यह समझौता कब हुआ?
नेशनल इरानियन ऑयल कंपनी और पेट्रोपार्स ग्रुप के बीच यह समझौता तेहरान में ईरान के पेट्रोलियम मंत्री की मौजूदगी में 17 मई 2021 को हुआ. बता दें कि फरजाद-बी गैस फील्ड में 23 ट्रिलियन क्यूबिक फीट गैस रिजर्व है. इसमें से 60 प्रतिशत तक गैस निकाजी जा सकती है. इसके अतिरिक्त इस गैस फील्ड में गैस कंडेंनसेट्स हैं, जिसमें 5000 बैरल प्रति बिलियन क्यूबिक फीट गैस मौजूद है.
फरजाद-बी गैस फील्ड की खोज
रिपोर्ट के अनुसार, इस गैस फील्ड से अगले पांच साल तक हर रोज 2.8 करोड़ क्यूबिक मीटर गैस निकाली जा सकती है. फरजाद-बी गैस फील्ड की खोज ओएनजीसी विदेश लिमिटेड ने पर्शियन गल्फ यानी फारसी ऑफसोर एक्सप्लोरेशन ब्लॉक में साल 2008 में की थी.
11 बिलियन डॉलर निवेश करने की पेशकश
ओएनजीसी विदेश ने ईरान को इस गैस फील्ड को विकसित करने के लिए 11 बिलियन डॉलर निवेश करने की पेशकश दी थी. ईरान की नेशनल इरानियन ऑयल कंपनी भारत के इस प्रस्ताव पर वर्षों तक बैठी रही और अब यह पूरी तरह से भारत के हाथ से निकल गया है.
ईरान और चीन के बीच द्विपक्षीय व्यापार
ईरान और चीन ने अगले 10 साल में द्विपक्षीय व्यापार को 10 गुना बढ़ाकर 600 अरब डॉलर करने का लक्ष्य रखा है. चीन ईरान का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है. यही नहीं चीन ईरान में 5G सर्विस शुरू करने में मदद कर सकता है.
भारतीय निवेश के लिए संकट
चीन की ईरान में उपस्थिति से भारतीय निवेश के लिए संकट पैदा हो गया है. अमेरिका के दबाव की वजह से ईरान के साथ भारत के रिश्ते नाजुक दौर में हैं. भारत ने ईरान के बंदरगाह चाबहार के विकास पर अरबों रुपये खर्च किए हैं. भारत ने डील की शर्तों में बार-बार बदलाव और इसमें देरी के लिए ईरान को जिम्मेदार ठहराया है.
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