भारतीय वैज्ञानिकों ने बनाया कम लागत वाला स्पेक्ट्रोग्राफ, दूरस्थ आकाशीय पिंडों के मंद प्रकाश का लगायेगा पता

Mar 5, 2021, 16:39 IST

स्पेक्ट्रोग्राफ सुदूरवर्ती ब्लैक-होल और कॉस्मिक विस्फोटों के आसपास के क्षेत्रों, क्वासरों और आकाशगंगाओं से आने वाले मंद प्रकाश का पता लगा सकता है.

Indian scientists develop low-cost spectrograph that can locate faint light from distant celestial objects
Indian scientists develop low-cost spectrograph that can locate faint light from distant celestial objects

एक महत्वपूर्ण विकास में, भारतीय वैज्ञानिकों ने स्वदेशी तौर पर एक कम लागत वाले ऑप्टिकल स्पेक्ट्रोग्राफ का डिजाइन और विकास किया है, जो दूर की आकाशीय वस्तुओं से मंद प्रकाश के स्रोतों का पता लगाने में सक्षम है.

यह स्पेक्ट्रोग्राफ सुदूरवर्ती ब्लैक-होल और कॉस्मिक विस्फोटों के आसपास के क्वासरों और आकाशगंगाओं से मंद प्रकाश का पता लगा सकता है.

‘मेड इन इंडिया’ ऑप्टिकल स्पेक्ट्रोग्राफ को एरीस-देवस्थल फेंट ऑब्जेक्ट स्पेक्ट्रोग्राफ एंड कैमरा (ADFOSC) नाम दिया गया है.

मुख्य विशेषताएं

• ‘मेड इन इंडिया’ स्पेक्ट्रोग्राफ को आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्जर्वेटिव साइंसेज (ARIES), नैनीताल द्वारा स्वदेशी तौर पर डिजाइन और विकसित किया गया है.
• इस स्पेक्ट्रोग्राफ को 3.6-मीटर देवस्थल ऑप्टिकल टेलीस्कोप (डीओटी) पर सफलतापूर्वक तैनात किया गया है, जो भारत और एशिया में सबसे बड़ा है.

किफायती दाम

• स्वदेशी तौर पर विकसित यह स्पेक्ट्रोग्राफ प्रकाश के स्रोतों का लगभग एक फोटॉन प्रति सेकंड की दर से पता लगा सकता है.
• इस तरह के स्पेक्ट्रोस्कोप अब तक उच्च लागत पर विदेशों से आयात किए जाते थे, लेकिन यह 'मेड इन इंडिया’ स्पेक्ट्रोग्राफ आयातित स्पेक्ट्रोग्राफ की तुलना में लगभग 2.5 गुना कम लागत पर विकसित किया गया है.

स्पेक्ट्रोग्राफ कैसे काम करता है?

• स्पेक्ट्रोग्राफ विशेष शीशे से बने कई लेंसों की एक जटिल व्यवस्था का उपयोग करता है, जो आकाशीय पिंडों की बिलकुल स्पष्ट छवियों को प्रस्तुत करने के लिए 5-नैनोमीटर से अधिक समतलता तक पॉलिश किए जाते हैं.
• टेलीस्कोप दूर के आकाशीय स्रोतों से आने वाले फोटोन्स को एकत्रित करता है, जिसे तब स्पेक्ट्रोग्राफ द्वारा अलग-अलग रंगों में छांटा जाता है और इन-हाउस विकसित चार्ज-कपल्ड डिवाइस (सीसीडी) कैमरे का उपयोग करके इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड करने योग्य संकेतों में परिवर्तित किया जाता है, जो एक बेहद कम तापमान -120 डिग्री सेल्सियस - पर ठंडा होता है.
• इस यंत्र की कुल लागत लगभग 04 करोड़ रुपये है.

स्पेक्ट्रोग्राफ का उपयोग खगोलविदों द्वारा एक बहुत ही युवा ब्रह्मांड में दूर के कैसर और आकाशगंगाओं का अध्ययन करने के लिए किया जाता है, जो सुपरनोवा और अत्यधिक ऊर्जावान गामा-रे फटने, मंद  बौनी आकाशगंगाओं और युवा और विशाल तारों जैसे विशालकाय ब्लैक-होल और ब्रह्मांडीय विस्फोटों के आसपास के क्षेत्र हैं.

एरीस के वैज्ञानिक डॉ. अमितेश उमर ने स्पेक्ट्रोग्राफ विकसित करने के लिए एक तकनीकी और वैज्ञानिक टीम के साथ इस परियोजना का नेतृत्व किया था. इस टीम ने अनुसंधान किया और स्पेक्ट्रोग्राफ और कैमरे के विभिन्न ऑप्टिकल, मैकेनिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स सबसिस्टम निर्मित किए.

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) सहित विभिन्न राष्ट्रीय संस्थान और संगठन इस उपकरण  के विभिन्न हिस्से तैयार करने और उनकी समीक्षा करने में शामिल थे.

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