रेटिंग एजेंसी फिच रेटिंग्स ने 21 सितम्बर 2018 को मार्च 2019 में खत्म होने वाले चालू वित्त वर्ष में भारत की आर्थिक वृद्धि दर का अनुमान 7.4% से बढ़ाकर 7.8% कर दिया.
एजेंसी ने कहा कि आने वाले दिनों में वित्तीय स्थिति की मज़बूती, बढ़ते तेल खर्च और बैंकों की कमज़ोर बैलेंस शीट जैसी चुनौतियों पर नज़र रखनी होगी.
मुख्य तथ्य:
• फिच रेटिंग्स ने अपनी ‘ग्लोबल इकोनॉमिक आउटलुक’ (वैश्विक आर्थिक परिदृश्य) शीर्षक ताजा रिपोर्ट में वित्तीय स्थिति के तंग होने, तेल आयात बिल बढ़ने और बैंकों के कमजोर बैलेस-शीट को भारत की वृद्धि के रास्ते की चुनौतियों में गिना है.
• फिच ने कहा है की 2018 की दूसरी तिमाही (चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही) में उम्मीद से बेहतर परिणाम को देखते हुए हमने वित्त वर्ष 2018-19 के लिए पूर्व के 7.4 प्रतिशत के वृद्धि दर के पूर्वानुमान में संशोधन कर उसे 7.8 फीसदी कर दिया.
• चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में आर्थिक वृद्धि दर 8.2 प्रतिशत थी. फिच ने पहले इस तिमाही के लिए जीडीपी में 7.7 फीसदी की वृद्धि का अनुमान लगाया था.
• रेटिंग एजेंसी ने वित्त वर्ष 2019-20 और 2020-21 में वृद्धि दर के पूर्वानुमान में 0.2 फीसदी की कमी करते हुए उसे 7.3 प्रतिशत पर रखा है.
• रिपोर्ट में फिच ने कहा कि 2019 की शुरुआत में होने वाले चुनाव के मद्देनजर भारत की राजकोषीय नीति के विकास दर के लिहाज से अनुकूल रहने की संभावना है.
• सार्वजनिक क्षेत्र, खास कर सरकारी उद्यमों द्वारा अवसंरचना के क्षेत्र में निवेश बढ़ाए जाने निवेश/जीडीपी अनुपात में गिरावट का रुझान रोकने में मदद मिली है.
फिच रेटिंग्स ने अपनी ग्लोबल इकोनॉमिक आउटलुक रिपोर्ट में वित्तीय स्थिति के तंग होने, तेल आयात बिल बढ़ने और बैंकों के कमजोर बैलेंसशीट को भारत के लिए बड़ी चुनौतियां माना है. फिच ने रिपोर्ट में कहा है की रुपये में गिरावट को लेकर आरबीआई की कोशिशों के बावजूद ब्याज दरों में अनुमान से अधिक इजाफा किया गया है.
यह भी पढ़ें: संयुक्त राष्ट्र के ई-गवर्नेंस इंडेक्स में भारत टॉप 100 देशों में शामिल
Comments
All Comments (0)
Join the conversation