भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने एक बड़ी सफलता हासिल करते हुए रीयूज़ेबल लॉन्च व्हीकल ऑटोनॉमस लैंडिंग मिशन (RLV LEX) का सफल परीक्षण किया है. इसे रीयूज़ेबल लॉन्च व्हीकल के विकास में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है.
इसरो और उसके सहयोगियों ने एरोनॉटिकल टेस्ट रेंज (एटीआर), चित्रदुर्ग, कर्नाटक में इस टेस्ट को सफलता पूर्वक पूरा किया. इस मिशन को डीआरडीओ और इंडियन एयर फ़ोर्स की मदद से पूरा किया गया.
India 🇮🇳 achieved it!
— ISRO (@isro) April 2, 2023
ISRO, joined by @DRDO_India @IAF_MCC, successfully conducted the Reusable Launch Vehicle Autonomous Landing Mission (RLV LEX)
at the Aeronautical Test Range (ATR), Chitradurga, Karnataka in the early hours on April 2, 2023.
टेस्टिंग हाइलाइट्स:
यह दुनिया में पहला मौका था जब एक 'विंग बॉडी' को हेलीकॉप्टर की मदद से 4.5 किलोमीटर की ऊंचाई पर ले जाया गया और रनवे पर ऑटोनॉमस (स्वतः) लैंडिंग के लिए रिलीज़ किया गया.
रीयूज़ेबल लॉन्च व्हीकल (आरएलवी) को भारतीय वायु सेना के एक चिनूक हेलीकॉप्टर द्वारा एक अंडरस्लंग लोड के रूप में 4.5 किमी की ऊंचाई पर ले जाकर रिलीज़ किया गया.
रिलीज़ किये जाने के बाद, आरएलवी एकीकृत नेविगेशन और कंट्रोल सिस्टम को फॉलो करते हुए लैंडिंग के लिए अप्रोच किया और सफलता पूर्वक अपनी ऑटोनॉमस लैंडिंग पूरी की.
यह व्हीकल लैंडिंग, स्पेस री-एंट्री लैंडिंग के समान थी, जिस प्रकार कोई स्पेस क्राफ्ट अर्थ के लिए अप्रोच करता है. जो हाई स्पीड, और मानवरहित लैंडिंग के समान थी.
क्या है आरएलवी-टीडी प्रोजेक्ट?
इसरो के अनुसार, विंग्स आरएलवी-टीडी व्हीकल प्रोजेक्ट टेस्टिंग की एक सीरीज है, जो स्पेस में कम लागत वाली पहुंच को सक्षम बनाने के लिए जरुरी है. यह प्रोजेक्ट रीयूज़ेबल लॉन्च के लिए आवश्यक टेक्नोलॉजी के विकास का एक महत्वपूर्ण भाग है.
इसरो का RLV-TD एक एयरक्राफ्ट की तरह दिखता है, इसमें एक फ्यूजलेज, एक नोज़ कैप, डबल डेल्टा विंग्स और ट्विन वर्टिकल टेल्स होते हैं.
आरएलवी-टीडी प्रोजेक्ट का उद्देश्य:
इसरो के अनुसार, इस प्रोजेक्ट की मदद से भारत के रीयूज़ेबल टू स्टेज ऑर्बिटल (TSTO) लांच व्हीकल प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने में काफी मदद मिलेगी.
इसरो ने मई 2016 में हेक्स मिशन के तहत विंग आरएलवी-टीडी व्हीकल के री-एंट्री की टेस्टिंग की थी. हाइपरसोनिक सब-ऑर्बिटल व्हीकल की इस टेस्टिंग को एक मेजर बूस्ट के रूप में देखा गया था.
RLV-TD का उपयोग हाइपरसोनिक फ़्लाइट (HEX), ऑटोनॉमस लैंडिंग (LEX), रिटर्न फ़्लाइट एक्सपेरिमेंट (REX), पावर्ड क्रूज़ फ़्लाइट और स्क्रैमजेट प्रोपल्शन एक्सपेरिमेंट (SPEX) जैसी टेक्नोलॉजी को विकसित करने के लिए किया जाएगा.
RLV प्रोजेक्ट कब हुआ था लांच?
इसरो की तरफ से वर्ष 2010 में आरएलवी के पहले टेस्टिंग की शुरुआत की गयी थी, लेकिन तकनीकी कारणों से इसकी टेस्टिंग को टाल दिया गया था. RLV प्रोजेक्ट में विशेष रिसर्च के बाद इसे पुनः23 मई, 2016 में लांच किया गया.
इस टेस्टिंग को इसरो की ओर से एक एक "बेबी स्टेप" बताया गया था. इस टेस्ट के तहत, 1.75 टन का RLV-TD ले जाने वाला एक रॉकेट 91.1 सेकंड के लिए अंतरिक्ष में लॉन्च किया गया था जो लगभग 56 किमी की ऊँचाई तक पहुँचा था.
रीयूज़ेबल लॉन्च टेक्नोलॉजी की उपयोगिता:
नासा पहले से एह तरह की टेक्नोलॉजी का अपने स्पेस मिशनों में उपयोग कर रहा है. आज की स्पेस रेस में रीयूज़ेबल लॉन्च टेक्नोलॉजी कम लागत में कार्य करने वाली विश्वसनीय और ऑन-डिमांड मोड टेक्नोलॉजी है.
स्पेस लांच व्हीकल में लगभग 80 से 87 प्रतिशत लागत व्हीकल के स्ट्रक्चर पर खर्च किया जाता है. इसकी तुलना में प्रोपेलेंट की लागत न्यूनतम है.
रीयूज़ेबल लॉन्च टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में, प्राइवेट स्पेस एजेंसी स्पेसएक्स ने वर्ष 2017 से अपने फाल्कन 9 और फाल्कन हेवी रॉकेट के साथ आंशिक रूप से लॉन्च सिस्टम का पुनर्जीवित किया है.
Reaching for the stars, together with @isro
— Indian Air Force (@IAF_MCC) April 2, 2023
The IAF's trial team which participated in today's successful Reusable Launch Vehicle Autonomous Landing Mission (RLV LEX) at Chitradurga was headed by an #IAF woman officer who is a Flight Test Engineer at ASTE.#NaariShakti@IAFTPS pic.twitter.com/WE7cDrvI2M
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