भारतीय संसद ने श्रम कानूनों में सुधार के लिए ऐतिहासिक श्रम संहिता की पारित

Sep 25, 2020, 18:48 IST

इस नई श्रम संहिता के तहत, 18000 रुपये मासिक से कम वेतन वाले एक राज्य से दूसरे राज्य में आने वाले सभी श्रमिक प्रवासी श्रमिक की परिभाषा के तहत आएंगे और सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ प्राप्त करेंगे.

Parliament passes historic Labour Codes to reform labour laws in Hindi
Parliament passes historic Labour Codes to reform labour laws in Hindi

इस 23 सितंबर, 2020 को संसद ने तीन श्रम संहिताएं (लेबर कोड्स) पारित कीं हैं, जिनका उद्देश्य ऐतिहासिक "गेम चेंजर" श्रम कानूनों के क्रियान्वयन का मार्ग प्रशस्त करना था. राज्यसभा द्वारा सदन से आठ सांसदों के निलंबन को लेकर विपक्षी नेताओं द्वारा बहिष्कार के दौरान ही राज्यसभा द्वारा ध्वनि मत के माध्यम से अपनी स्वीकृति देने के बाद यह श्रम सहिंता पारित की गई. लोकसभा ने 22 सितंबर को यह विधेयक पारित किया था.

इन तीन श्रम संहिताओं में निम्नलिखित हैं शामिल

  1. औद्योगिक संबंध संहिता, 2020: यह विधेयक हरेक संस्था में समयबद्ध विवाद समाधान प्रणाली प्रदान करने का प्रयास करता है.
  2. व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और काम करने की स्थिति संहिता, 2020 (OSH कोड): इस विधेयक में श्रमिकों, विशेषकर महिलाओं के लिए सुरक्षित कार्य वातावरण की परिकल्पना की गई है.
  3. सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020: इस विधेयक का उद्देश्य व्यापक सामाजिक सुरक्षा के दायरे में संगठित और असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को शामिल करने के लिए एक ढांचा या तंत्र प्रदान करना है.

केंद्रीय श्रम मंत्री संतोष गंगवार ने इन तीन श्रम सुधार बिलों पर बहस का जवाब देते हुए यह कहा कि, इन श्रम सुधारों का उद्देश्य बदलते हुए कारोबारी माहौल के अनुकूल एक पारदर्शी व्यवस्था प्रदान करना है. उन्होंने इन तीनों विधेयकों को एक ऐतिहासिक गेम-चेंजर के रूप में वर्णित किया जो श्रमिकों, उद्योगों और अन्य संबंधित पक्षों की आवश्यकताओं में सामंजस्य स्थापित करेगा.

मंत्रीजी ने आगे यह भी कहा कि, ये श्रम संहितायें  देश में श्रमिकों के कल्याण के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होंगी. उन्होंने आगे बताया कि, वर्ष 2014 के बाद से केंद्र सरकार ने श्रमिकों के कल्याण के लिए कई कदम उठाए हैं और इन श्रम संहिताओं के माध्यम से, समग्र श्रम सुधार हासिल करने का लक्ष्य साकार हो रहा है.

श्रम मंत्री के अनुसार, सामाजिक सुरक्षा संहिता व्यापक सामाजिक सुरक्षा के दायरे में संगठित और असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को शामिल करने के लिए एक रूपरेखा प्रदान करती है. इसमें भवन निर्माण श्रमिकों और असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए EPFO, ESIC, मातृत्व लाभ, ग्रेच्युटी सामाजिक सुरक्षा निधि से संबंधित प्रावधान शामिल हैं. इस सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 का उद्देश्य प्रधानमंत्री की सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा के दृष्टिकोण का क्रियान्वयन करना है.

उद्देश्य

इन श्रम सुधारों को लागू करने का प्रमुख उद्देश्य हमारे श्रम कानूनों को कार्यस्थल की निरंतर बदलती हुई दुनिया के अनुरूप बनाना है और श्रमिकों और उद्योगों की आवश्यकताओं को संतुलित करते हुए एक प्रभावी और पारदर्शी प्रणाली प्रदान करना है. श्रम मंत्री ने कहा कि, यदि भारत अपने श्रम कानूनों में आवश्यक बदलाव नहीं करता है, तो हम इन दोनों क्षेत्रों अर्थात श्रमिकों के कल्याण और उद्योगों के विकास में पीछे रह जाएंगे.

मंत्रीजी ने आगे जोर देकर यह कहा कि, आत्मनिर्भर श्रमिक के कल्याण और अधिकारों की संरचना निम्नलिखित चार स्तंभों पर आधारित है:

) वेतन सुरक्षा

देश में 44 श्रम कानूनों के होने के बावजूद, श्रम मंत्री ने यह बताया कि, भारत के 50 करोड़ श्रमिकों में से केवल 30 प्रतिशत श्रमिकों को ही न्यूनतम मजदूरी का कानूनी अधिकार था और सभी श्रमिकों को समय पर वेतन नहीं दिया गया था. इस नई श्रम संहिता के तहत, संगठित और असंगठित क्षेत्र के सभी 50 करोड़ श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी और समय पर मजदूरी का कानूनी अधिकार मिलेगा.

) श्रम सुरक्षा

  • इस स्तंभ का उद्देश्य श्रमिक के स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए एक सुरक्षित कार्य परिवेश को सुनिश्चित करना और सुरक्षा से संबंधित मानकों को प्रभावी और गतिशील बनाए रखना है.
  • यह OSH संहिता एक निश्चित आयु से ऊपर के श्रमिकों के लिए एक वार्षिक स्वास्थ्य जांच की व्यवस्था करती है. इस संहिता में छुट्टी के लिए न्यूनतम योग्यता 240 दिनों से 180 दिनों तक कम किया गया है.
  • इस बिल के प्रावधानों के तहत, कार्यस्थल पर किसी श्रमिक को चोट लगने या उसकी मृत्यु होने पर, नियोक्ता को कम से कम 50 प्रतिशत जुर्माना, अन्य लाभों के अलावा, पीड़ित श्रमिक को देना होगा. इन सभी प्रावधानों का उद्देश्य श्रमिकों को एक सुरक्षित कार्य वातावरण प्रदान करना है.
  • इस संहिता के विभिन्न प्रावधानों के तहत, महिलाएं अपनी पसंद के अनुसार रात में किसी भी प्रकार के संस्थान में काम कर सकती हैं, लेकिन उनके नियोक्ता को सभी जरूरी आवश्यक सुरक्षा व्यवस्थायें करनी होंगी, जैसाकि अधिकृत सरकार द्वारा निर्धारित किया गया है. इस प्रावधान का उद्देश्य महिलाओं को पुरुषों के समान कार्य करने की स्वतंत्रता प्रदान करना है.

) व्यापक सामाजिक सुरक्षा

  • इसे सुनिश्चित करने के लिए, सरकार ने अपनी सामाजिक सुरक्षा संहिता के तहत ESIC और EPFO का दायरा बढ़ाने का फैसला किया है. ESIC का दायरा बढ़ाने के उद्देश्य से, देश के सभी 740 जिलों को कवर करने के लिए इसका सीमा-क्षेत्र बढ़ाया गया है. ESIC का यह विकल्प 10 से कम श्रमिकों वाले बागान श्रमिकों, असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों, जिग्स और प्लेटफॉर्म श्रमिकों और संस्थानों को भी दिया जाएगा.
  • इसके अलावा, अगर किसी संस्थान में कोई जोखिम भरा काम किया जाता है तो ऐसे संस्थान को अनिवार्य रूप से ESIC के दायरे में लाया जाएगा, भले ही उस संस्थान के पास सिर्फ एक मजदूर हो. इसके अलावा, EPFO के दायरे को बढ़ाने के लिए, मौजूदा कानून में संस्थानों की अनुसूची को हटा दिया गया है और अब 20 या अधिक श्रमिकों वाले सभी संस्थान EPF के दायरे में आएंगे.
  • इसके अलावा, 20 से कम श्रमिकों वाले संस्थानों को और स्व-नियोजित श्रमिकों को भी इस सामाजिक सुरक्षा संहिता के तहत EPFO का यह विकल्प दिया जाएगा.

सामाजिक सुरक्षा निधि

  • असंगठित क्षेत्र के 40 करोड़ श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए एक सामाजिक सुरक्षा निधि भी स्थापित किया जाएगा.
  • इस निधि के माध्यम से, असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों और प्लेटफॉर्म श्रमिकों को लाभान्वित करने के लिए विभिन्न सामाजिक सुरक्षा योजनाएं बनाई जाएंगी.
  • इन 40 करोड़ श्रमिकों को मातृत्व लाभ, पेंशन, दुर्घटना बीमा और मृत्यु बीमा सहित सभी प्रकार के सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान करने के लिए भी योजनायें बनाई जाएंगी. इन प्रयासों का उद्देश्य सरकार की सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा कवरेज की प्रतिज्ञा को पूरा करना है.

) औद्योगिक इकाइयों में शांति और सद्भाव

  • इस संहिता को सरल और प्रभावी बनाने के साथ-साथ, औद्योगिक इकाइयों में शांति और सद्भाव को कायम रखने के लिए सरकार ने औद्योगिक संबंध संहिता, 2020 (IR संहिता) के माध्यम से फिक्स्ड टर्म एम्प्लॉयमेंट (निश्चित अवधि का रोज़गार) का कॉन्सेप्ट प्रस्तुत किया है.
  • इस संहिता के माध्यम से सरकार ने यह सुनिश्चित किया है कि, निश्चित अवधि के कर्मचारियों की सेवा शर्तों, वेतन, छुट्टी और सामाजिक सुरक्षा को नियमित कर्मचारियों के साथ ही उन लोगों के लिए भी बढ़ाया जाएगा, जो संबद्ध संस्थान में थोड़े समय के लिए लगे हुए हैं और जिन्हें अवकाश, सामाजिक सुरक्षा और ग्रेच्युटी जैसी सेवा शर्तें नहीं मिली हैं. इसके अलावा, ऐसी निश्चित अवधि के कर्मचारी को प्रो-राटा ग्रेच्युटी का अधिकार भी दिया जाएगा.
  • इस IR संहिता में हड़ताल के प्रावधान भी हैं, हालांकि वे हड़ताल पर जाने के लिए किसी भी श्रमिक के अधिकार को वापस नहीं लेते हैं.

हालांकि, इन प्रावधानों के तहत, इस अवधि के दौरान सौहार्दपूर्ण बातचीत के माध्यम से विवाद को समाप्त करने का प्रयास करने के लिए प्रत्येक संस्थान पर 14 दिन की नोटिस अवधि की बाध्यता लगाई गई है.

  • इस IR संहिता के तहत 100 श्रमिकों से बढ़ाकर अब 300 श्रमिकों तक रिट्रेसमेंट, क्लोजर या ले-ऑफ सीमा को भी बढ़ाया गया है. हालांकि, संबंधित राज्य सरकार को इन कानूनों को बदलने का अधिकार होगा क्योंकि श्रम समवर्ती सूची का विषय है.
  • श्रम मंत्री ने यह भी बताया कि, इस अधिकार का उपयोग करने वाले लगभग 16 राज्यों ने पहले ही इस सीमा को बढ़ा दिया है. एक संसदीय स्थायी समिति ने पहले भी सिफारिश की थी कि इस सीमा को 300 श्रमिकों तक बढ़ाया जाए. उन्होंने आगे कहा कि, आर्थिक सर्वेक्षण 2019 में यह दर्शाया गया है कि, राजस्थान राज्य द्वारा इस थ्रेशोल्ड को 100 से 300 तक बढ़ाने के बाद, रोजगार सृजन में वृद्धि हुई और छंटनी में भी अभूतपूर्व कमी हुई है.
  • इसके अलावा, विभिन्न ट्रेड यूनियनों को पहली बार इस IR संहिता के तहत संस्था स्तर, राज्य स्तर और केंद्र स्तर पर मान्यता दी जाएगी, क्योंकि वे श्रमिकों को संस्थानों में उनके अधिकार दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं.

रि-स्किलिंग फंड

अगर किसी कर्मी की नौकरी छूट जाए तो, दोबारा रोजगार हासिल करने की संभावना बढ़ाने के उद्देश्य से इस IR संहिता में रि-स्किलिंग फंड का प्रावधान शामिल किया गया है. इन श्रमिकों को इस उद्देश्य के लिए 15 दिन का वेतन दिया जाएगा.

प्रवासी श्रमिकों के अधिकार

इस IR संहिता में कोविड -19 के परिदृश्य में प्रवासी श्रमिकों के अधिकारों को मजबूत करने का भी एक विशेष प्रावधान है. सबसे पहले और सबसे महत्त्वपूर्ण, प्रवासी श्रमिकों की परिभाषा को व्यापक बनाया गया है.

अब 18,000 रुपये से कम मासिक वेतन कमाने वाले और एक राज्य से दूसरे राज्य में आने-जाने वाले सभी श्रमिक इस प्रवासी श्रम की परिभाषा में शामिल होंगे और सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ प्राप्त करेंगे.

इस संहिता में प्रवासी श्रमिकों के लिए एक डाटाबेस बनाने का प्रावधान भी शामिल है ताकि उनकी कल्याणकारी योजनाओं की पोर्टेबिलिटी और एक अलग हेल्पलाइन व्यवस्था कायम की जा सके. इसके अलावा, इस नई श्रम संहिता के तहत नियोक्ताओं को प्रवासी श्रमिकों को वर्ष में एक बार अपने मूल स्थान पर जाने के लिए यात्रा भत्ता प्रदान करना होगा.

पृष्ठभूमि

कुल 29 श्रम कानूनों के समामेलन और व्यापक परामर्श के बाद यह नई श्रम संहिता तैयार की गई है. केंद्र सरकार ने इस श्रम संहिता को अंतिम रूप देने से पहले कई चर्चाएं कीं, जिनमें व्यापार संघों, विशेषज्ञों और अंतर्राष्ट्रीय निकायों के साथ परामर्श और अंतर-मंत्रालयी परामर्श के साथ-साथ 2-3 महीनों के लिए सार्वजनिक क्षेत्र में यह श्रम संहिता रखकर हासिल किये गये सार्वजनिक सुझावों को ध्यान में रखना शामिल है.

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