जून और जुलाई 2017 में बाढ़ के कारण भारत के कई राज्य प्रभावित हुए. प्रमुख प्रभावित राज्यों मंआ गुजरात, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और असम शामिल हैं. एक अनुमान के अनुसार, वर्षा से जुड़े कारणों की वजह से 1 जून से कम से कम 224 मौतें हुईं.
हाल ही में बाढ़ ने पशु जीवन, बुनियादी ढांचे और पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचाया. अतः इस पृष्ठभूमि में आवर्ती बाढ़ के कारणों, सामाजिक और आर्थिक जीवन पर उसके प्रभाव और प्रभाव को कम करने के साथ-साथ उनकी पुनरावृत्ति से बचने के लिए आवश्यक कदमों को समझना जरूरी है.
कारण
बाढ़ के कई कारण हैं और भिन्न भिन्न क्षेत्रों में उसका कारण भिन्न भिन्न होता है. भारत में बाढ़ के कुछ प्रमुख कारण नीचे दिए गए हैं-
भारी वर्षा :
यह भारत में बाढ़ का मुख्य कारण है. विशेष रूप से कम समय में अधिक बारिश बहुत चिंता का विषय है, क्योंकि इससे बाढ़ आने की आशंका ज्यादा होती है. उदाहरण के लिए जुलाई 2017 में माउंट आबू में 24 घंटों के अंतराल में बहुत भारी बारिश हुई. ऐसा लगभग 300 वर्षों में पहली बार हुआ है. हिल स्टेशन पर 24 घंटों में 700 मिमी वर्षा होती है.संयुक्त राष्ट्र द्वारा किये गए एक अध्ययन के अनुसार, दुनिया भर में बाढ़ का मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन की घटना है.
नदियों में पानी के बहाव से लायी गयी मिट्टी या रेत
नदियों की तलछटी में पानी के बहाव से जमा मिट्टी या रेत नदियों के जल वाहन की क्षमता को कम कर देती है, जिससे बाढ़ की समस्या बढ़ जाती है. उदाहरण के लिए ब्रह्मपुत्र नदी में 2 किमी से लेकर 14 किमी तक पानी के बहाव से लायी गयी मिट्टी या रेत का जमाव पूर्वोत्तर क्षेत्र में लगातार बाढ़ का प्रमुख कारण है.
नालियों में रुकावट:
अवरुद्ध नालियां शहरी क्षेत्रों में विशेषकर महानगरों में बाढ़ का मुख्य कारण है. उदाहरण के लिए ड्रेनेज सिस्टम की विफलता दिसंबर 2015 में चेन्नई में आई बाढ़ के प्राथमिक कारणों में से एक है, जिसके कारण लगभग 400 से ज्यादा लोगों की मौत हो गयी.
भूस्खलन:
उत्तर और उत्तर-पूर्व के पहाड़ी इलाकों में बाढ़ का प्रमुख कारण भूस्खलन है. उदाहरण के लिए जून 2013 में भूस्खलन के कारण उत्तराखंड में नदियों के प्रवाह में रुकावट उत्पन्न होने के कारण बाढ़ की समस्या बनी रही जिसमें लगभग 5748 लोगों की मौत हो गयी.
उपर्युक्त कारणों के अतिरिक्त प्राकृतिक आपदाएं जैसे चक्रवात और भूकंप तथा नदी के किनारों और जल निकायों के अतिक्रमण भी बार बार आने वाले बाढ़ का मुख्य कारण हैं.
बाढ़ का सबसे महत्वपूर्ण परिणाम जीवन और संपत्ति का नुकसान है. घरों, पुलों और सड़कों जैसे ढांचे बुरी तरह से पानी से क्षतिग्रस्त हो जाते हैं. बाढ़ के कुछ नकारात्मक प्रभाव नीचे दिए गए हैं –
कृषि पर प्रभाव:
आवर्ती बाढ़ कृषि क्षेत्र पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं.आवर्ती बाढ़ के कारण खेतों में पानी जमा हो जाता है और फसलों को नुकसान पहुँचता है. फसल उत्पादन में कमी के कारण किसान दिनों दिन कर्ज के शिकार होते चले जाते हैं. इससे नुकसान केवल कृषि समुदाय को ही नहीं होता है बल्कि लगातार मुद्रास्फीति में उतार चढ़ाव के चलते आम आदमी भी प्रभावित होता है. इसके अलावा दुधारू जानवरों के जीवन के खतरे से कृषि समुदाय पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है.
साथ ही साथ बाढ़ मिटटी की उत्पादकता को भी प्रभावित करता है तथा ऊपरी परत के बहाव के कारण जमीन बंजर हो जाती है.
बुनियादी ढांचे को नुकसान:
आवर्ती बाढ़ आर्थिक संरचनाओं जैसे परिवहन नेटवर्क, बिजली उत्पादन और वितरण आदि को गंभीर नुकसान पहुंचाते हैं.
रोगों का प्रकोप :
उचित पेयजल सुविधाओं की कमी तथा भूजल या पाइप से आने वाले दूषित जल के सेवन से दस्त, वायरल संक्रमण, मलेरिया और कई अन्य संक्रामक रोगों के होने की संभावना बढ़ जाती है.
इसके अतिरिक्त प्रशासन पर तनाव, बाढ़ प्रभावित आबादी के बचाव और पुनर्वास की लागत, चिंता का एक अन्य कारण है.
समाधान - शमन और पुनर्वास
आवर्ती बाढ़ की समस्या के समाधान हेतु कुछ महत्वपूर्ण उपाय नीचे दिए गए हैं-
• क्षेत्र में बाढ़ के जोखिम को कम करने के लिए बाढ़ प्रवण क्षेत्रों का मानचित्र तैयार करना एक प्राथमिक कदम है. ऐतिहासिक रिकॉर्ड बाढ़ के क्षेत्र,उसकी अवधि तथा उसके द्वारा कवर किये जाने वाले सीमा की सूचना देते हैं.
• बाढ़ के मैदानों और तटीय इलाकों में पानी का प्रवाह होने पर भूमि उपयोग नियंत्रण से जीवन और संपत्ति का खतरा कम होगा.
• आबादी वाले क्षेत्रों में हताहत होने का जोखिम अधिक रहता है.इसलिए उन क्षेत्रों के लोगों को जहां लोग पहले से ही अपने बस्तियों का निर्माण कर चुके हैं, बेहतर साइटों पर पुनर्वास के लिए कदम उठाए जाने चाहिए ताकि हताहतों की संख्या कम की जा सके.
• ऐसे क्षेत्रों में किसी भी प्रमुख विकास की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए जहाँ बाढ़ की अधिकतम संभावना हो.
• अस्पताल तथा स्कूलों जैसी महत्वपूर्ण सुविधाओं की व्यवस्था सुरक्षित क्षेत्रों में की जानी चाहिए.
• शहरी क्षेत्रों में जल धारण करने वाले क्षेत्रों को तालाबों, झीलों या निचले इलाकों की तरह बनाया जा सकता है.
• इमारतों को एक ऊंचा क्षेत्र पर बनाया जाना चाहिए. यदि आवश्यक हो तो किसी उचें मंच पर उसका निर्माण किया जाना चाहिए.
• जंगल, वनस्पति की सुरक्षा, धाराओं से मलबे का समाशोधन और अन्य जल धारण क्षेत्रों, तालाबों और झीलों के संरक्षण की सहायता से अपवाह की मात्रा को कम किया जा सकता है.
• जल निकासी के उपायों जैसे तटबंध और बांधों का निर्माण किया जाना चाहिए.
निष्कर्ष
एक अनुमान के अनुसार भारत का 12% हिस्सा बाढ़ संभावित क्षेत्र है. केन्द्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) के अनुसार, 1970 और 1980 के दशक में बाढ़ की वजह से कुल जीडीपी में 0.86% की कमी हुई. हालांकि, वर्तमान दशक में यह हिस्सा जीडीपी के 0.1% से भी नीचे आ गया है. लेकिन अर्थव्यवस्था के बढ़ते आकार को देखते हुए यह नुकसान बहुत बड़ा है. इसलिए प्रशासन को बाढ़ के खतरे से निबटने तथा उसे रोकने के लिए दीर्घकालिक ठोस उपाय करना चाहिए.
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