रसगुल्ला नाम पर एकाधिकार को लेकर कानूनी लड़ाई में बंगाल को रसगुल्ला का ज्योग्राफिकल इंडिकेशन यानी जी आई पंजीकरण प्रदान किया गया. रसगुल्ला नाम पर एकाधिकार हेतु ओडिशा और पश्चिम बंगाल के मध्य कानूनी लड़ाई चल रही थी. इसकी जानकारी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने लंदन से ट्विटर पर दी है.
जीआइ टैग-
किसी भी उत्पाद का जीआइ टैग उसके स्थान विशेष की पहचान बताता है. रसगुल्ला को जीआइ टैग मिलाने के बाद रसगुल्ला नाम पर पूरी दुनिया में बंगाल एकाधिकार हो गया.
पृष्ठभूमि-
दोनों राज्यों ओडिशा और पश्चिम बंगाल के मध्य रसगुल्ले का आविष्कार कहां हुआ है, इस बात को लेकर विवाद था. वर्ष 2015 में ओडिशा के विज्ञान व तकनीकी मंत्री प्रदीप कुमार पाणिग्र्रही के दावे कि रसगुल्ला का आविष्कार ओडिशा में हुआ है, के बाद यह विवाद सुर्खियों में आया.
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ओडिशा के विज्ञान व तकनीकी मंत्री प्रदीप कुमार पाणिग्र्रही ने अपने इस दावे को सिद्ध करने के लिए भगवान जगन्नाथ के खीर मोहन प्रसाद को भी इससे जोड़ा. उन्होंने दावा किया कि 600 वर्ष पहले से यहां रसगुल्ला मौजूद है.
इसपर बंगाल के खाद्य प्रसंस्करण मंत्री अब्दुर्रज्जाक मोल्ला ने कहा था कि रसगुल्ला का आविष्कारक बंगाल है और हम ओडिशा को इसका क्रेडिट नहीं लेने देंगे. दोनों राज्य सरकारें इस मामले को लेकर कोर्ट तक जाने को तैयारी में थी.
वर्ष 2010 में एक मैगजीन के लिए करवाए गए सर्वे में रसगुल्ला को राष्ट्रीय मिठाई के रूप में पेश किया गया. ओडिशा सरकार ने रसगुल्ला की भौगोलिक पहचान (जीआइ) के लिए कदम उठाया. दावा किया कि मिठाई का सम्बन्ध ओडिशा से है. बंगाल ने इसका विरोध शुरू कर दिया.
ओडिशा का सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग मंत्रालय रसगुल्ला को राज्य की भौगोलिक पहचान से जोडऩे में लगा हुआ था. दस्तावेज एकत्रित किए गए, जिससे साबित हो कि पहला रसगुल्ला भुवनेश्वर और कटक के मध्य अस्तित्व में आया. वहीं, पश्चिम बंगाल ने इन सभी दावों का तोड़ ढूंढ निकाला और आखिर में रसगुल्ले पर बंगाल का कब्जा हो गया.
रसगुल्लों से जुड़ी सबसे प्रचलित कहानी यह है कि कोलकाता में 1868 में नबीनचंद्र दास ने इसे बनाने की शुरुआत की. कई इतिहासकारों की दलील है कि 17वीं शताब्दी से पहले भारतीय खानपान में ''छेना" का जिक्र नहीं मिलता जो रसगुल्ला बनाने के लिए सबसे जरूरी होता है. भारतीय पौराणिक आख्यानों में भी दूध, दही, मक्खन का जिक्र तो मिलता है पर छेना का नहीं मिलता.
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बंगाल सरकार का तर्क-
बंगाल सरकार ने भी रसगुल्ला या रसोगुल्ला को अपना बताने के लिए ऐतिहासिक साक्ष्य जुटाने में केसी दास प्राइवेट लिमिटेड की मदद ली. यह मिठाई की दुकानों की चेन है जो नवीन चंद्र दास के वंशजों द्वारा संचालित की जा रही है. बंगाल की तरफ से जवाब देने के लिए विस्तृत डोजियर तैयार किया गया था। इसमें मुख्य रूप से तीन तर्क दिए गए. जिसमें कहा गया कि छेना से रसगुल्ला बना, छेना बंगाल में ही अस्तित्व में आया, साथ ही रसगुल्ला व रोसोगुल्ला शब्द बांग्ला भाषा का है.
बंगाल में 18वीं सदी के दौरान डच और पुर्तगाली उपनिवेशकों ने छेना से मिठाई बनाने की तरकीब सिखाई और तभी से रसगुल्ला अस्तित्व में आया. खानपान के कई जानकार मानते हैं कि रसगुल्ला की खोज नवीन चंद्र (इन्हें कोलंबस ऑफ रोसोगुल्ला भी कहा जाता है) ने 1868 में की. कटक और भुवनेश्वर के बीच स्थित पहाल रसगुल्ले के लिए बहुत मशहूर है, यहाँ हाइवे के दोनों किनारे वर्षों से रसगुल्ले का थोक बाजार लगता है.
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