भारत के दिल कहे जाने वाले दिल्ली में यदि प्रमुख ऐतिहासिक इमारतों की बात करें, तो इसमें कुतुब मीनार का नाम भी प्रमुखता से लिया जाता है। दक्षिणी दिल्ली के महरौली इलाके में स्थित कुतुब मीनार कभी दिल्ली की सबसे ऊंची मीनार हुआ करती थी। एक समय था, जब लाला किला से भी पहले दिल्ली को कुतुब मीनार से ही जाना जाता था। सल्तनत काल में यह मीनार दिल्ली की सबसे प्रमुख पहचान रही है।
उस समय इसे महरौली में जंगलों के पास बनवाया गया था। आज यह इमारत भारतीय पर्यटन के क्षेत्र में अहम पहचान रखती है, जिसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं।
किसने बनवाया था कुतुब मीनार
कुतुब मीनार बनावने के पीछे तीन शासकों को श्रेय दिया जाता है। इसके निर्माण की शुरुआत दिल्ली सल्तनत काल में 1199 ई. में कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा की गई थी। उन्होंने इसकी पहली मंजिल बनवाई थी। बाद में उनके उत्तराधिकारी इल्तुतमिश ने इसमें तीन और मंजिलों को जोड़ा। हालांकि, बाद में बिजली गिरने की वजह से यह बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई थी, जिसे मुहम्मद बिन तुगलक ने ठीक करवाया और इसमें पांचवी मंजिल जोड़ी।
क्या है कुतुब मीनार के गुंबद की कहानी
कुतुब मीनार के ऊपर कभी एक गुंबद हुआ करता था। हालांकि, 1803 में दिल्ली में आए भूकंप के कारण वह गुंबद गर गिया। ऐसे में ब्रिटिश अधिकारियों ने इसके लिए एक गुंबद बनवाने का निर्णय लिया।
1828 में लगाया गुंबद
भूकंप की वजह से इमारत क्षतिग्रस्त हो गई थी। ऐसे में 1828 में ब्रिटिश अधिकारियों ने बंगाल इंजीनियर्स के रॉबर्ट स्मिथ को इसकी मरम्मत का काम सौंपा। उन्होंने न सिर्फ इसकी मरम्मत की, बल्कि इसके ऊपर एक इंडो-इस्लामिक शैली का एक गुंबद भी लगा दिया।
क्यों कहा गया स्मिथ फॉली
स्मिथ द्वारा जो गुंबद मीनार के ऊपर लगाया गया था, उसकी काफी आलोचन हुई। कई विद्वानों ने कहा था कि यह गुंबद कुतुब मीनार के ऊपर नहीं जंच रहा है। कई इतिहासकार इस बात से खासा नाराज थे, जिससे स्मिथ फॉली शब्द दिया गया। फॉली शब्द यहां मिसमैच के लिए प्रयुक्त किया गया था।
1848 में उतरा था गुंबद
अंत में लॉर्ड हार्डिंग द्वारा 1848 में इस गुंबद को उतारने के लिए आदेश दिया गया। इसके बाद इसे उतार दिया गया। हालांकि, इसे उतारने के बाद नष्ट नहीं किया गया, बल्कि इसे आज भी कुतुब मीनार के परिसर में देखा जा सकता है। यह गुंबद एक बड़े चबूतरे पर रखा गया है, लेकिन बहुत ही कम लोगों को इस संबंध में जानकारी है।
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