फ्लोरिडा स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने 25 अक्टूबर 2017 को भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून (आईएसएम) के आरंभ तथा अंत होने की सटीक जानकारी के लिए एक नई प्रणाली विकसित की. वैज्ञानिकों द्वारा विकसित इस प्रणाली में किसी भी क्षेत्र की वर्षा दर को रिकॉर्ड करके वहां होने वाली बारिश की भविष्यवाणी की जा सकती है.
वर्तमान समय में वैज्ञानिक भारत के अन्य भागों में मानसून की भविष्यवाणी के लिए दक्षिण पश्चिम भाग में होने वाली वर्षा पर निर्भर होते हैं. इस प्रक्रिया के लिए केरल के प्रोटोकॉल पर विशेष निगरानी रखी जाती है.
भारत में जुरासिक काल के विशाल सरीसृप का जीवाश्म मिला
इस विषय पर किये गये शोध के निष्कर्षों को क्लाइमेट डायनामिक्स नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया. इस शोध के मुख्य बिंदु हैं:
• भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून की अवधि की भविष्यवाणी के लिए भरोसेमंद प्रणाली विकसित करना.
• भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून के किसी भी स्थान के लिए भविष्यवाणी की जा सकती है.
• वर्षा ऋतु के आरंभ होने पर इसकी दर का अनुमान लगाना.
यह प्रणाली किस प्रकार लाभकारी है
देश के कुछ हिस्से में मानसून में बारिश कुल वार्षिक वर्षा अनुमान से 90 फीसदी ज्यादा होती है. अभी तक क्षेत्रीय मौसम विभाग मानसून का आगमन तय करने के लिए अपने तदर्थ मानदंड पर निर्भर करते हैं जो अक्सर विरोधाभासी दावे करते हैं. अब उन्नत प्रणाली का इस्तेमाल कर अधिकारी और शोधकर्ता देश में मानसून का आकलन कर सकेंगे.
Comments
All Comments (0)
Join the conversation