सुप्रीम कोर्ट ने 3 दिसंबर 2017 को सरकार से उन कॉरपोरेट ईकाईयों की सूची मांगी है जिन पर 500 करोड़ रुपये से अधिक कर्ज बकाया है. मोदी सरकार द्वारा की गयी नोटबंदी के बाद काले धन एवं जमाखोरी पर लगाम लगाने हेतु यह सुप्रीम कोर्ट का एक बड़ा कदम है.
कॉरपोरेट ईकाईयों की सूची जारी करने के निर्देश के अतिरिक्त सरकार से ऋण वसूली उन मामलों से सम्बंधित आंकड़े भी मांगे गये हैं जिनके केस न्यायाधिकरणों व उनके अपीलीय निकायों में दस साल से लंबित हैं.
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर और न्यायाधीश ए.एम. खानविलकर तथा डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने डीआरटी व ऋण वसूली अपीलीय न्यायाधिकरणों (डीआरएटी) में बुनियादी ढांचे व श्रम बल की कमी पर खिन्नता जताई.
मुख्य बिंदु
• न्यायालय के अनुसार इस प्रकार के मामलों में त्वरित निपटान हेतु विधायी सुधार आवश्यक हैं तथा उन्हें प्रभावी ढंग से लागू किया जाना चाहिए.
• सुप्रीम कोर्ट के अनुसार दस साल से अधिक समय से लंबित मामलों के बारे में प्रायोगिक आंकड़ा तथा 500 करोड़ रुपये से अधिक राशि की कर्जदार कॉरपोरेट इकाइयों की सूची सौंपे.
• न्यायालय ने सरकार से पूछा कि डीआरटी व डीआरएटी में कर्मचारियों की स्थिति व न्यायिक अधिकारियों सहित संशोधित कानून द्वारा क्या लक्ष्यों को समय सीमा में हासिल किया जा सकता है.
• इससे पहले न्यायालय ने कहा था कि गैर-निष्पादित आस्तियों का आंकड़ा लाखों करोड़ रुपये का है तथा इसकी वसूली प्रक्रिया तर्कसंगत नहीं है.
पृष्ठभूमि
इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करने के दौरान यह निर्देश जारी किया गया. यह याचिका वर्ष 2003 में दाखिल की गई थी जिसमें सरकारी कंपनी आवास तथा शहरी विकास निगम (हडको) द्वारा कुछ कंपनियों को बांटे गए ऋण का मुद्दा उठाया गया. याचिका के अनुसार वर्ष 2015 में करीब 40,000 करोड़ रुपये के कॉरपोरेट ऋण को बट्टे खाते में डाल दिया गया तथा उसके लिए वसूली हेतु प्रयास नहीं किये गये.
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