अमेरिका में कच्चे तेल का भाव शून्य डॉलर से भी नीचे लुढ़का, पहली बार सबसे बड़ी गिरावट

Apr 22, 2020, 16:20 IST

दुनियाभर में फैली महामारी के चलते अमेरिका में 20 अप्रैल को कच्चे तेल की कीमतें इतिहास में पहली बार शून्य से भी नीचे पहुंच गईं. लॉकडाउन की वजह से पेट्रोल व डीजल की मांग एकदम घट गई है.

US oil prices turn negative as demand dries up in Hindi
US oil prices turn negative as demand dries up in Hindi

इतिहास में पहली बार, अमेरिका में तेल की कीमतें 20 अप्रैल, 2020 को शून्य डॉलर ($) से भी कम हो गईं. दुनिया में कच्चे तेल की सबसे बढ़िया क्वालिटी , वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (WTI) की कीमतें न्यूयॉर्क में शून्य डॉलर के स्तर से भी – 40.32 अमरीकी डॉलर प्रति बैरल तक कम हो गईं.

मई माह के वितरण के लिए वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (WTI) कच्चे तेल की कीमत $ 55.90 से - $ 37.63 प्रति बैरल तक हो गई जोकि लगभग 306 प्रतिशत की गिरावट है. यह मानव जाति के इतिहास में कच्चे तेल की सबसे कम कीमत है. पिछली बार द्वितीय विश्व युद्ध के बाद तेल की कीमतें इसी प्रकार बहुत कम हुई थीं.

तेल की कीमतों में शून्य डॉलर से नीचे गिरावट का क्या मतलब है?

शून्य डॉलर से नीचे कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट का यह मतलब है कि विक्रेता या निवेशक कच्चे तेल के खरीदार को अनिवार्य रूप से खरीदे गए प्रत्येक बैरल के लिए भुगतान करेंगे. कच्चे तेल की कीमतों में भारी गिरावट के प्रमुख कारण कच्चे तेल की प्रचूरता और कोविड -19 महामारी को नियंत्रित करने के लिए लगाये गए लॉक डाउन के कारण भंडारण स्थान की कमी है. 

कच्चे तेल की कीमतें शून्य डॉलर से नीचे कैसे कम हुईं?

कोविड -19 महामारी

हालांकि कच्चे तेल की कीमतें पिछले महीनों से ही गिरने लगी थीं, लेकिन कोविड -19 महामारी के कारण लगाए गए लॉकडाउन का पूरे विश्व में तेल मांग पर गंभीर प्रभाव पड़ा है क्योंकि प्रत्येक लॉकडाउन की वजह से, कम उड़ानें भरी गईं और कम कारों का इस्तेमाल हुआ. वर्तमान में, दुनिया के अधिकांश हिस्सों में लॉकडाउन है, जिसका अर्थ यह है कि लगभग कोई भी वाणिज्यिक उड़ान नहीं भरी गई है और बहुत कम कारों का उपयोग किया जा रहा है. दुनिया के अधिकांश हिस्सों में केवल मालवाहक उड़ानों के लिए और आपातकालीन वाहनों का इस्तेमाल करने की ही अनुमति दी जा रही है ताकि नोवल कोरोना  वायरस को तीव्रता से फैलने से रोका जा सके. इस महामारी ने अब तक पूरी दुनिया में लगभग  1,65,000 से अधिक लोगों की जान ले ली है. पूरी दुनिया में निर्माण, विनिर्माण और प्रसंस्करण इकाइयों के साथ अधिकांश गैर-आवश्यक आर्थिक गतिविधियों को भी अस्थायी रूप से बंद कर दिया गया है.

मांग कम, आपूर्ति अधिक

वर्तमान परिदृश्य में, जबकि कच्चे तेल की आपूर्ति नियमित है, मांग में काफी गिरावट आ गई है और जिसके परिणामस्वरूप, कच्चे तेल की वैश्विक मांग से कहीं अधिक उसकी आपूर्ति हो रही है. ऐसी किसी भी परिस्थिति में, सम्बद्ध वस्तु की कीमत गिर जाती है. वैश्विक स्तर पर तेल बाजार में और खासकर अमरीका में कच्चा तेल इन दिनों प्रचूर मात्रा में उपलब्ध है.

ओपेक की भूमिका

पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन (ओपेक), जिसका नेतृत्व सऊदी अरब कर रहा है, दुनिया में कच्चे तेल का सबसे बड़ा निर्यातक संगठन है. यह संगठन अकेले ही विश्व निर्यात की 10 प्रतिशत मांग पूरी  करता है. तेल की कीमतों को अनुकूल स्तर पर बनाए रखने और निर्धारित करने के लिए यह संगठन तेल के उत्पादन को आवश्यकता के अनुसार बढ़ाता है या इसमें कटौती करता है.

हाल ही में, रूस और सऊदी अरब के बीच एक विवाद ने इस संगठन के लिए विश्व स्तर पर तेल की कीमतों को निर्धारित करना और इसकी आपूर्ति करना मुश्किल कर दिया था. हालांकि तेल के किसी भी कुएं को पूरी तरह से बंद करना या उत्पादन में कटौती करना मुश्किल है क्योंकि उस तेल के कुएं को फिर से शुरू करना बहुत श्रम-साध्य और महंगा है और अगर अन्य देश भी ऐसा नहीं करते हैं तो  उत्पादन में कटौती करने वाला देश अपनी बाजार हिस्सेदारी खोने का जोखिम भी उठाता है.

रूस - सऊदी अरब विवाद

इस वर्ष मार्च माह की शुरुआत में, सऊदी अरब और रूस कीमतों को स्थिर रखने के लिए आवश्यक उत्पादन कटौती पर असहमत हो गए. इसके बाद सऊदी अरब के नेतृत्व वाले प्रमुख तेल निर्यातक देशों ने पहले की तरह ही समान मात्रा में तेल का उत्पादन जारी रखते हुए एक-दूसरे की तुलना में तेल का  मूल्य कम करना शुरू कर दिया.

इस स्थिति को बदतर बनाने के लिए कोरोना वायरस पूरी दुनिया में तेज़ी से फैलने लगा जिसके बाद के लॉकडाउन ने दुनिया-भर के देशों को इस प्रकोप से निपटने में व्यस्त कर दिया. कोरोना वायरस के लॉकडाउन के परिणामस्वरूप आर्थिक गतिविधियों में तेजी से कमी और निजी परिवहन का कम उपयोग होने लगा जिसके परिणामस्वरूप तेल की मांग में बहुत गिरावट आई.

हालांकि अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने हस्तक्षेप किया और सऊदी अरब-रूस के इस विवाद को सुलझा दिया, लेकिन शायद तब तक बहुत देर हो चुकी थी. जबकि प्रमुख तेल निर्यातक देशों ने उत्पादन में तेजी से कटौती करने का फैसला किया, लेकिन तब तक कच्चे तेल की मांग भी तेजी से घटने लगी. इस वर्ष मार्च और अप्रैल के बीच लगभग सभी देशों में लागू लॉकडाउन की वजह से दुनिया भर में तेल की मांग में बहुत गिरावट आई. तेल की अतिरिक्त आपूर्ति के परिणामस्वरूप लगभग सभी देशों की तेल भंडारण क्षमता समाप्त हो चुकी है. पहले तेल की ढुलाई करने के लिए इस्तेमाल होने वाले जहाजों और रेल-गाड़ियों को अब तेल का भंडारण करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है.

अमरीका में कच्चा तेल

वर्ष 2018 में संयुक्त राज्य अमेरिका कच्चे तेल का सबसे बड़ा उत्पादक देश बन गया था. यही कारण है कि अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प तेल की उच्च कीमतें निर्धारित करने के लिए जोर दे रहे हैं. हालांकि, अमरीका के कच्चे तेल की किस्म  (WTI) के लिए मई अनुबंध समाप्त होने से एक दिन पहले ही, गत 20 अप्रैल को कच्चे तेल की कीमतें गिरने लगीं.

ये हैं तेल की कीमतों में तीव्र गिरावट के दो प्रमुख कारण:

• कई तेल उत्पादक देश तेल के उत्पादन को बंद करने के बजाय बेहद कम कीमतों पर अपने तेल से छुटकारा पाना चाहते थे, क्योंकि तेल की बिक्री में होने वाले इस नुकसान की तुलना में तेल उत्पादन को फिर से शुरू करना महंगा होगा.

• खरीदार पक्ष में, जो देश अनुबंध के मुताबिक तेल लेने के लिए बाध्य थे, वे अधिक तेल खरीदने की मजबूरी से बाहर निकलना चाहते थे क्योंकि यदि उन्हें तेल की यह डिलीवरी लेनी थी तो उनके पास इस तेल के भंडारण के लिए कोई जगह नहीं थी. इन देशों के लिए, तेल वितरण को स्वीकार करना, उसके परिवहन और भंडारण की सुविधा के लिए भुगतान करना ऐसे समय में अधिक महंगा साबित हो रहा है जब तेल के भंडारण विकल्प काफी कम बचे हैं और यह लॉकडाउन कब तक जारी रहेगा, इस बारे में कुछ भी निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता है.

खरीदार और विक्रेता देश, ये  दोनों ही इस तेल की प्रचूर उपलब्धि से छुटकारा पाना चाहते थे और इस वजह से तेल की कीमतों में शून्य डॉलर से भी कम की गिरावट आ गई. वर्तमान परिस्थितियों में, उत्पादकों के लिए तेल के उत्पादन को रोकने और तल का भंडारण करने के बजाय खरीददारों को लगभग 40.32 डॉलर प्रति बैरल का भुगतान करके तेल से छुटकारा पाना कम खर्चीला था.  

क्या ऐसा दुबारा हो सकता है?

ऐसा दुबारा होने की संभावना नहीं है, क्योंकि कच्चे तेल के उत्पादक देशों को अब अस्थायी रूप से तेल के उत्पादन में कटौती करने के लिए मजबूर किया जाएगा. हालांकि, यह निश्चित तौर पर बिलकुल नहीं कहा जा सकता कि तेल की कीमतों में यह भारी गिरावट दुबारा हो सकती है या नहीं, क्योंकि कोरोना  वायरस लगातार फैलने की वजह से, विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका में, तेल की मांग हर दिन कम हो रही है.

क्या विश्व में भी तेल की कीमतों में गिरावट आई?

अभी तो केवल अमरीका में ही कच्चे तेल की कीमत में शून्य डॉलर से निचले स्तर तक गिरावट हुई है. हालांकि दुनिया के अन्य बाजारों में भी कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट आई है लेकिन इतनी अधिक नहीं. फिलहाल, आने वाले कुछ महीनों में तेल की कीमतें कम होने की उम्मीद है.

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