जमानत के बाद नए सिरे से आपराधिक गतिविधियों से जुड़ने वाले गुंडों और असमाजिक तत्वों को एहतियातन हिरासत में लिया जा सकता है. इसके लिए पहले आरोपी के पक्ष को सुनना सरकार के लिए संवैधानिक बाध्यता नहीं है.
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति पी सतसिवम और न्यायमूर्ति बीएस चौहान की खंडपीठ ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह बताया कि बार-बार अपराधी गतिविधियों में सम्मिलित रहने वालों को हिरासत में लेना संबंधित प्रशासन के निजी अधिकार क्षेत्र में है. खंडपीठ ने बताया कि संविधान के अनुच्छेद 22 की उपधारा(5) के तहत ऐसा कोई संवैधानिक उत्तरदायित्व नहीं है कि हिरासत में लेने की पुष्टि से पहले आरोपी के पक्ष को सुना जाए.
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति पी सतसिवम और न्यायमूर्ति बीएस चौहान की खंडपीठ ने डीएम नागराज की दायर अपील को खारिज करते हुए यह आदेश दिया. ज्ञातव्य हो कि कर्नाटक उच्च न्यायालय ने भी बेंगलूर पुलिस आयुक्त की ओर से नागराज को हिरासत में लेने के लिए जारी आदेश के खिलाफ दायर की गई डीएम नागराज की याचिका खारिज कर दी थी.
डीएम नागराज पर कई आपराधिक गतिविधियों में शामिल होने का आरोप था. कर्नाटक पुलिस आयुक्त ने 22 सितंबर 2010 को जारी अपने आदेश में वर्ष 1985 के विध्वंसक गतिविधियों के खिलाफ बने राज्य के कानून की धारा 2(जी) के तहत नागराज को हिरासत में लेने की पुष्टि की थी.
नागराज ने सर्वोच्च न्यायालय में दायर अपनी याचिका में तर्क दिया था कि उसको हिरासत में लेने का आदेश अवैध और मौलक अधिकार का हनन है. उसने बताया था कि उसे हिरासत में लेने का आदेश जारी करते समय उसका पक्ष नहीं सुना गया. हिरासत में लेने के आदेश को बरकरार रखते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने बताया कि कर्नाटक राज्य प्रशासन ने सही आदेश जारी किया था.
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