भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने वर्ष 2013-14 की मौद्रिक नीति की पहली तिमाही के लिए मध्यावधि समीक्षा 17 जून 2013 को जारी की. पहली तिमाही की मध्यावधि समीक्षा में आरबीआई ने नगद आरक्षी अनुपात (सीआरआर) को यथावत रखते हुए इसे निवल मांग एवं मीयादी देयताओं का 4 फीसदी तथा चलनीघि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत रिपो दर को 7.25 फीसदी रखने की घोषणा की.
आरबीआई ने वर्ष 2013-14 की मौद्रिक नीति की पहली तिमाही के लिए मध्यावधि समीक्षा में स्पष्ट किया कि एलएएफ के अंतर्गत प्रत्यावर्तनीय रिपो दर (रिवर्स रिपो दर) भी 6.25 फीसदी जबकि सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) एवं बैंक दर 8.25 फीसदी बनी रहेगी.
वर्ष 2013-14 की मौद्रिक नीति की पहली तिमाही के लिए मध्यावधि समीक्षा में आरबीआई के निर्णयों पर अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रूपये की कमजोर होती स्थिति पर नियंत्रण करने का प्रभाव स्पष्ट रूप से है. आरबीआई को रूपये के कमजोर होने से मंहगाई दर के बढ़ने का पूरा अंदेशा है और आरबीआई पिछले दो वर्षों में मुद्रास्फिति पर नियंत्रण करने के लिए काफी कड़े कदम उठाये हैं.
आरबीआई के वर्ष 2013-14 की मौद्रिक नीति की पहली तिमाही के लिए मध्यावधि समीक्षा में आयात-निर्यात नें बढ़ रहे असंतुलन का प्रभाव देखा जा सकता है. विभिन्न उपायों के बावजूद निर्यात के मुकाबले आयात अधिक होने से व्यापार घाटा मई 2013 में बढ़कर 2000 करोड़ डॉलर के पार कर गया. इसमे प्रमुक कारक सोने एवं चांदी का आयात रहा जो कि पिछली अवधि के मुकाबले मई 2013 में 90 फीसदी बढ़ा. विभिन्न मौद्रिक दरों को बनाए रखने के पीछे आरबीआई की चिंता देश में घटते विदेशी पूंजी प्रवाह को लेकर है जो कि अधिक आयात होगा कम निर्यात से भी प्रभावित होती है.
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