केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 28 जुलाई 2011 को लोकपाल विधेयक (Lokpal bill) के सरकारी प्रारूप को मंजूरी प्रदान की. मंजूर किए गए लोकपाल विधेयक के अनुसार प्रधानमंत्री, न्यायपालिका और संसद में सांसदों का आचरण लोकपाल के दायरे में नहीं रखा गया.
केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा मंजूर किए गए लोकपाल विधेयक के तहत पूर्व प्रधानमंत्री समेत महत्वपूर्ण पद पर बैठे किसी भी व्यक्ति के खिलाफ सात साल पुराने मामलों में ही लोकपाल को जांच करने पर सहमति बनी. साथ ही केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI: Central Investigation Bureau) को भी लोकपाल के अधीन नहीं रखा गया.
लोकपाल विधेयक (Lokpal bill) का प्रारूप: लोकपाल में एक अध्यक्ष और आठ सदस्य का चयन होना है. लोकपाल टीम में आधे पद न्यायिक पृष्ठभूमि से होने हैं. इसका अध्यक्ष सर्वोच्च न्यायालय का पूर्व प्रधान न्यायाधीश या पूर्व न्यायाधीश हो सकता है. शेष सदस्यों के चयन हेतु प्रशासनिक या सार्वजनिक जीवन में 25 वर्ष का अनुभव और बेदाग छवि मापदंड है. लोकपाल का कार्यकाल पांच वर्ष का होगा और इसे सर्वोच्च न्यायालय की जांच रिपोर्ट और राष्ट्रपति की सहमति से हटाया जा सकेगा.
कानून मंत्रालय के अनुसार आपसी हितों का टकराव रोकने के लिए न्यायपालिका को लोकपाल के दायरे से बाहर रखने का निर्णय लिया गया. साथ ही लोकपाल के फैसलों को चुनौती भी न्यायालय में ही दी जानी है, इसलिए दोनों संस्थाओं का कार्य-दायरा स्वतंत्र होना चाहिए.
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