भारत ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) के गाजा में इस्राइल के आक्रामक रवैये की समस्या से संबंधित एक संकल्प के पक्ष में 23 जुलाई 2014 को मतदान किया.
संकल्प का शीर्षक था येरूशलम सहित अधिकृत फिलिस्तीनी क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय कानून हेतु सम्मान सुनिश्चित करना (Ensuring Respect for international law in The Occupied Palestinian Territories, including East Jersusalem, इन्श्योरिंग रेस्पेक्ट फॉर इंटरनेशनल लॉ इन द ऑक्यूपायड पैलेस्टिनियन टेरेटरीज, इनक्लूडिंग इस्ट जेरूसलेम), जिसके पक्ष में 29 देशों ने मतदान किया जबकि यूरोपीय देशों सहित कुल 17 देश मतदान की प्रक्रिया के दौरान अनुपस्थित रहे. 47 सदस्यों वाले यूएनएचआरसी में इस संकल्प के खिलाफ मत करने वाला अमेरिका एक मात्र देश था.
यूएनएचआरसी संकल्प की मुख्य बातें
• परिषद ने पूर्वी येरूशलम सहित लंबे समय से कब्जे में फिलिस्तीनी सीमा पर कब्जा समाप्त करने में इस्राइल की विफलता की कड़े शब्दों में निंदा की.
• परिषद ने नागरिकों के खिलाफ होने वाली सभी प्रकार की हिंसा की निंदा की, इसमें दो इस्राइली नागरिकों की हत्या भी शामिल है.
• इसने सभी नागरिकों जिसमें इस्राइली नागरिक भी शामिल हैं, के खिलाफ हमलों को खत्म करने की मांग की.
• परिषद ने इस्राइल से गाजा पट्टी से तुरंत और पूरी तरह से कब्जा हटाने की भी मांग की.
• इसने अंतरराष्ट्रीय समुदायों से गाटा पट्टी में रहने वाले फिलिस्तीनी लोगों के लिए तत्काल आवश्यक मानवीय सहायता और सेवा प्रदान करने का भी आह्वाहन किया.
• इसने इस्राइल के जेलों में फिलिस्तीनी कैदियों एवं निरोध केंद्रों में बंदियों की हालत पर गहरी चिंता जताई.
• इसने स्विट्जरलैंड सरकार से तुरंत उच्च संपर्क दलों का सम्मेलन चौथे जिनेवा कन्वेंशन के लिए कराने की सिफारिश की.
इस बीच, 16 दिनों से जारी इस्राइल– गाजा हिंसा में करीब 680 फिलिस्तीनी और 31 इस्राइली लोग मारे जा चुके हैं. संघर्ष विराम के कई प्रयासों के बावजूद न तो इस्राइल और न ही हमास हिंसा रोकने को राजी हैं. एक संघर्ष विराम की मध्यस्थता को मिस्र ने भी की है.
विश्लेषण
यूएनएचआरसी संकल्प के दिनों में भारत गाजा मुद्दे पर पशोपेश की स्थिति में था. छठे ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान भारत ने अन्य ब्रिक्स देशों के साथ मिलकर इस्राइल की निंदा की थी. इसके बाद जुलाई 2014 के तीसरे सप्ताह में केंद्र सरकार विपक्ष के गाजा मुद्दे पर संसद में चर्चा की मांग का विरोध करते हुए फिलिस्तीन के पक्ष में संसद में मतदान किया.
यूएनएचआरसी में भारत के रूख को विदेश नीति कट्टरपंथियों ने बहुत बड़ी गलती माना है. उनके अनुसार, यह भारत के पहले वाले रुख में बड़े बदलाव का संकेत देता है क्योंकि गाजा विद्रोह के दौरान भारत हमेशा से तटस्थ रुख रखता आया है.
लेकिन भारत की पशोपेश की स्थिति ने यह साबित कर दिया कि भारत की विदेश नीति में इस्राइल– फिलिस्तीन संघर्ष के मुद्दे पर निश्चितता का अभाव है.
इस्राइल गाजा संघर्ष
गाजा– इस्राइल संघर्ष गाजा पट्टी और दक्षिण इस्राइल के इलाके में लंबे समय से चल रही इस्राइल– फिलिस्तीन संघर्ष का हिस्सा है. यह 2005 में हमास के पक्ष में चुनाव नतीजे आने के बाद 2006 की गर्मियों में हमस के नियंत्रण वाले गाजा पट्टी में शुरु हुआ था.
यह संघर्ष पश्चिम घाट (वेस्ट बैंक) में फिलिस्तीनी प्राधिकरण का फतह सरकार और गाजा में हमास सरकार के विभाजन के बाद फतह के हिंसक रुख के बाद तेज हो गया था. फिलिस्तीनी रॉकेट इस्राइल पर हमला कर रहे थे और गाजा की इस्राइली नाकाबंदी ने इस संघर्ष को और भड़का दिया.
नया इस्राइल– गाजा संघर्ष जून 2014 में वेस्ट बैंक में रहने वाले तीन युवा इस्राइली नागरिकों के अपहरण के बाद शुरु हुआ. इसकी वजह से इस्राइल ने आक्रमक रुख अपनाया और नवंबर 2012 के संघर्ष विराम के बाद से पहली बार 30 जून 2014 को हमास को रॉकेट से हमला करने को उकसाया.
गाजा में इस्राइली रक्षा बलों द्वारा ऑपरेशन प्रोटेक्टिव एज की शुरुआत के बाद से फिलिस्तीन और इस्राइल के कुल 680 लोगों की जान जा चुकी है. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त नवी पिल्लै ने इस हिंसा को युद्ध अपराध करार दिया है.
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