डॉ. गिरीश साहनी ने 24 अगस्तक, 2015 से वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के महानिदेशक और विज्ञान तथा तकनीकी मंत्रालय के वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान विभाग (डीएसआईआर) के सचिव पद का कार्यभार संभाल लिया.
इससे पहले डॉ. साहनी सीएसआईआर-सूक्ष्म जीव प्रौद्योगिकी संस्थान (सीएसआईआर-इमटेक), चंड़ीगढ़ में निदेशक के पद पर थे. वे भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी, नई दिल्ली; भारतीय विज्ञान अकादमी, बंगलुरू; एनएएसआई, इलाहाबाद से जुड़े हैं और गुहा अनुसंधान सम्मेलन के सदस्य हैं.
डॉ. गिरीश साहनी के बारे में
- 2 मार्च 1956 को जन्मे डॉ. साहनी की विशेषज्ञता प्रोटीन इंजीनियरिंग, आणविक जीव विज्ञान और जैव प्रोद्योगिकी के क्षेत्र में है. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर डॉ. साहनी अनुसंधान के क्षेत्र में अपने योगदान की वजह से जाने जाते हैं.
- डॉ. साहनी ने प्रोटीन हृदयवाहिनी औषधि विशेष रूप से ‘खून का थक्का हटाने (क्लॉट बस्टर्स)’ और मानव शरीर पर इनके असर करने के तरीके के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया.
उनकी टीम ने अद्भुत जीवनरक्षक थ्रोम्बोमलिटिक औषधि (क्लॉयट-स्पेसिफिक स्ट्रेपटोकाइनेज) भी विकसित की. यह देश में पहला ऐसा जैव उपचार संबंधी अणु है जो जैविक रूप से समान नहीं है. इस जीवनरक्षक औषधि को विश्वभर में पेटेंट किया गया और एक अमरीकी फॉर्मा कंपनी को लाइसेंस दिया गया. - उनके नेतृत्व में एक टीम ने देश में पहली बार खून का थक्का हटाने की औषधि के निर्माण की तकनीक शुरू की, जिसे प्राकृतिक स्ट्रेपटोकाइनेज (ब्रांड नाम ‘एसटीपेस’ के तहत केडिला फॉर्मास्युटिकल्स लिमिटेड, अहमदाबाद द्वारा बाजार में लाया गया) और दुबारा मिश्रित स्ट्रेपटोकाइनेज (शसुन ड्रग्स, चेन्नई द्वारा निर्मित) और ‘क्लॉटबस्टर’ (एलेम्बिक) तथा ‘लुपिफ्लो’ (लुपिन) जैसे कई ब्रांड नाम से बाजार में उतारे गये.
- डॉ. साहनी को उनके योगदान के लिए राष्ट्रीय जैव प्रौद्योगिकी उत्पाद पुरस्कार 2002, सीएसआईआर टैक्नोलॉजी शिल्ड 2001-2002, वासविक औद्योगिक पुरस्कार 2000, औषधि विज्ञान में रेनबैक्सी पुरस्कार 2003, विज्ञान रत्न सम्मेलन 2014, श्री ओमप्रकाश भसीन पुरस्कार 2013 और व्यवसाय विकास एवं टैक्नोलॉजी मार्किटिंग के लिए सीएसआईआर टैक्नोलॉजी पुरस्कार, 2014 प्रदान किए गए.
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