ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम करने के मुद्दे पर चीन और अमेरिका ने 12 नवम्बर 2014 को समझौता किया. समझौते के तहत अमेरिका ने वर्ष 2025 तक उत्सर्जन का स्तर 2005 के मुक़ाबले 26 से 28 प्रतिशत तक कम करने का लक्ष्य रखा है. चीन ने हालाँकि इस तरह का कोई लक्ष्य नहीं रखा है, लेकिन कहा है कि वर्ष 2030 के बाद से कार्बन डाइऑक्साइड गैस के उत्सर्जन में कमी लाना शुरू कर देगा. दोनों देश हवा और समुद्र में सैन्य दुर्घटनाएं कम करने की संभावनाओं पर काम करने पर भी सहमत हुए.
यह समझौता अपेक् शिखर सम्मलेन के दौरान किया गया है जिसमें शामिल होने के लिए ओबामा बीजिंग गए थे. समझौता इस मायने में भी अहम है कि चीन और अमेरिका दुनिया में कुल कार्बन डाइऑक्साइड का 45 प्रतिशत उत्सर्जित करते हैं.
यहां बातचीत के बाद जारी साझा बयान के अनुसार इस समझौते के तहत अमेरिका 2025 में उत्सर्जन का स्तर 2005 के स्तर से 26 से 28 फीसदी तक कम करने के लक्ष्य को प्राप्त करना चाहता है और अपना उत्सर्जन 28 प्रतिशत तक कम करने के हरसंभव प्रयास करेगा.
यह पहली बार है कि दुनिया में सबसे ज़्यादा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जित करने वाला चीन गैस उत्सर्जन की अधिकतम सीमा तय करने पर राजी हुआ है. अमेरिकी अधिकारियों ने कहा कि पहली बार चीन ने अपने CO2 उत्सर्जन के अधिकतम स्तर पर पहुंचने की सहमति जताई है.
टिप्पणी
चीन ने लक्ष्य तय किया है कि उसका कार्बन डाई ऑक्साइड (CO2) का उत्सर्जन वर्ष 2030 के आसपास शीर्ष स्तर पर पहुंचाने के लिए यथासंभव प्रयास जारी रहेगा. इसके अलावा चीन ने कहा है कि वह 2030 तक वह अपनी प्रारंभिक उर्जा खपत में गैर-जीवाश्म ईंधन की साझेदारी करीब 20 प्रतिशत तक बढ़ाना चाहता है.
जबकि विज्ञानिकों का मानना है कि ये समझौता जलवायु परिवर्तन की समस्या से निबटने हेतु पर्याप्त नहीं है किन्तु एक अच्छी शुरुआत है. भय एवं आशंकाओं के कारण कई वर्षों तक ये समझौता अमल में नहीं लाया गया था. दुनिया के शीर्ष कार्बन उत्सर्जक देशों अमेरिका और चीन ने जलवायु परिवर्तन पर एक अप्रत्याशित समझौते पर पहुंचते हुए ग्रीनहाउस गैसों को सीमिति करने की महत्वाकांक्षी कार्रवाई का आह्वान किया. ये समझौता वर्ष 2020 पहले ग्रीन हाउस के गैसों के उत्सर्जन को समाप्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है जिसको अंतिम रूप अगले वर्ष पेरिस में होने वाले सम्मलेन में दिया जायेगा.
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