सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में बताया कि जनरल पावर ऑफ अटार्नी (GPA: general power of attorney, जीपीए) के जरिए संपत्ति हस्तांतरण पूर्ण और वैध नहीं है. सर्वोच्च न्यायालय ने 12 अक्टूबर 2011 को दिए निर्णय में बताया कि संपत्ति का मालिकाना अधिकार पंजीकरण के बाद ही मिलता है और तभी संपत्ति क्रेता के नाम दर्ज हो सकती है.
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरवी रवींद्रन, न्यायमूर्ति एके पटनायक एवं न्यायमूर्ति एचएल गोखले की पीठ ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया कि जिन लोगों ने इस जरिए से संपत्ति का लेन-देन किया है, उन्हें पंजीकरण कराने के लिए पर्याप्त समय दिया जाए. पीठ ने यह भी बताया कि यह निर्णय वर्तमान से लागू होगा ताकि लोगों को परेशानी न झेलनी पड़े.
सर्वोच्च न्यायालय की तीन सदस्यीय पीठ ने सुराज लैंप एंड इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड बनाम हरियाणा राज्य के मामले में जीपीए, बिक्री करार एवं वसीयत के जरिए संपत्ति हस्तांतरण के कानूनी पहलू का विश्लेषण करते हुए निर्णय दिया कि इनके जरिए संपत्ति का हस्तांतरण पूर्ण और वैध नहीं है. पीठ ने बताया कि इनके आधार पर राजस्व एवं म्युनिसिपल रिकॉर्ड में संपत्ति दाखिल-खारिज नहीं हो सकती है.
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह निर्णय सिर्फ फ्री होल्ड प्रॉपर्टी पर ही नहीं, बल्कि लीज होल्ड प्रॉपर्टी पर भी लागू किया गया. निर्णय के अनुसार लीज (पट्टा) का हस्तांतरण भी सिर्फ पंजीकरण के जरिए ही वैध हस्तांतरण माना जा सकता है.
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया कि जो लोग इस निर्णय से पहले जीपीए के आधार पर लेन-देन कर चुके हैं, वे इसे नियमित कराने के लिए आवेदन कर सकते हैं. जिन मामलों में विकास प्राधिकरण, डीडीए अथवा म्युनिसपिल व राजस्व विभाग इन दस्तावेजों को दाखिल-खारिज (म्यूटेशन) प्रक्रिया के लिए स्वीकार कर चुके हैं, वे मामले इस निर्णय से प्रभावित नहीं होंगे.
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