भारत ने अपने पहले क्षेत्रीय नेवीगेशनल (नौवहन) उपग्रह-आईआरएनएसएस-1ए (Indian Regional Navigation Satellite System, IRNSS) का सफल प्रक्षेपण किया. यह प्रक्षेपण भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन द्वारा चेन्नई से 120 किलोमीटर दूर श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से 1 जुलाई 2013 को किया गया. इस उपग्रह को धुव्रीय उपग्रह प्रक्षेपण यान-पीएसएलवी सी-22 (पोलर सेटेलाइट लांच व्हीकल) के द्वारा अंतरिक्ष में छोड़ा गया. प्रक्षेपण के 20 मिनट 42 सेकेंड बाद ही उपग्रह को उसकी कक्षा में स्थापित कर दिया गया.
इस उपग्रह से जमीनी, हवाई और समुद्री रास्तों पर वाहनों की निगरानी में बिल्कुल सटीक जानकारी उपलब्ध होगी. यह उपग्रह आपदा प्रबंधन में आंकड़े उपलब्ध करायेगा. साथ ही इससे समुद्री यात्रियों और गोताखोरों को भी मदद मिलेगी.
देश में ही विकसित आईआरएनएसएस-1ए पर 125 करोड़ रूपए की लागत आई और यह 10 साल तक काम करेगा. यह उपग्रह देश के भीतर और बाहर अपनी सीमा से 1500 किलोमीटर के दायरे तक स्थिति के बारे में सटीक सूचना देगा.
भारत के इस पहले नेविगेशनल उपग्रह के प्रक्षेपण के बाद भारत, अमरीका, रूस, चीन और कुछ यूरोपीय देशों की श्रेणी (आईआरएनएसएस) में शामिल हो गया.
यह चौथी बार है जब अत्याधुनिक उपग्रह तकनीक का प्रयोग किया गया है. इससे पहले यह चन्द्रयान, पीएसएलवी सी-11, 17,19, जीसैट-12 और सीसैट-1 में किय गया था. इस उपग्रह से नागरिक और रक्षा उद्देश्यों की पूर्ति के साथ भारत इस तकनीक (आईआरएनएसएस) को अपनाने वाला स्वतंत्र देश बन गया.
यह भारत का अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक और ऐतिहासिक कदम है. इसरो ने पहली बार रात में (11 बजकर 41 मिनट) कोई प्रक्षेपण किया है.
आईआरएनएसएस -1ए में देश के भौगोलिक रूप से बांटे गये 21 केन्द्रों का नेटवर्क होगा और ये बंगलौर के निकट बयालालू में इंडियन डीप स्पेस नेटवर्क द्वारा पूर्ण रूप से नियंत्रित होगा. इस उपग्रह में परमाणु घड़ियां लगाई गई हैं, जिससे लगातार नौवहनीय संकेत (Navigational Signal) मिलते रहेंगे. यह आईआरएनएसएस पर आधारित सात उपग्रहों की श्रृखंला का पहला उपग्रह है. इनकी पूरी प्रक्रिया 2015-16 में पूरी होगी.
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष के राधाकृष्णन ने पीएसएलवी के नए संस्करण की 23वीं सफल उड़ान पर प्रसन्नता व्यक्त की. उन्होंने कहा कि आईआरएनएसएस- 1 ए उपग्रह को उसकी कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित करना यह साबित करता है कि पीएसएलवी काफी भरोसेमंद है और इस प्रक्षेपण के साथ ही हम अंतरिक्ष नेविगेशन के नए युग में प्रवेश कर गए हैं.
इसरो के अध्यक्ष डॉक्टर राधाकृष्णन ने पत्रकारों को बताया कि मार्स आर्बिटर को 21 अक्तूबर 2013 के बाद, किसी भी समय पीएसएलवी सी-25 के जरिए प्रक्षेपित किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि कक्षा की ऊंचाई बढ़ाने के बाद यह काम 20 से 29 नवम्बर 2013 के बीच किया जाएगा.
डॉक्टर के राधाकृष्णन ने कहा कि वित्त वर्ष 2013-14 में 12 उपग्रह छोड़े जाने हैं. 25 जुलाई 2013 को इनसैट-3डी को फ्रैंच गयाना से छोड़ा जाएगा. उन्होंने बताया कि उत्तराखंड में आपदा प्रबंधन में इसरो ने राइसैट-1की मदद ली है और कार्टोसैट-2ए तथा 2डी की सहायता से प्रभावित क्षेत्रों की तस्वीरें ली गई हैं.
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